बिना मशीन के वायरस की पहचान! Clay based COVID detection तकनीक से बड़ी सफलता
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने clay based COVID detection तकनीक पर आधारित एक नई और सस्ती विधि विकसित की है, जिससे कोरोना वायरस का पता लगाना अब और भी आसान और सटीक हो जाएगा।
इस तकनीक की सबसे खास बात है कि इसमें महंगे उपकरणों या लंबे प्रोसेस की आवश्यकता नहीं होती। इसका उपयोग उन क्षेत्रों में भी किया जा सकेगा जहां संसाधनों की कमी है।
यह breakthrough शोध प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल Applied Clay Science में प्रकाशित हुआ है। यह शोध सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर टी.वी. भरत और बायोसाइंसेज एवं बायोइंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर सचिन कुमार के साथ दो शोधार्थी, डॉ. हिमांशु यादव और दीपा मेहता की टीम ने मिलकर किया है।
क्या है यह तकनीक?

इस तकनीक में Bentonite Clay का उपयोग किया गया है, जो अपनी नकारात्मक चार्ज सतह और प्रदूषक सोखने की क्षमता के लिए जानी जाती है। शोध में पाया गया कि जब इस मिट्टी को वायरस और इलेक्ट्रोलाइट के साथ मिलाया गया, तो वायरस कण मिट्टी के साथ जुड़ गए और कुछ समय में नीचे बैठ गए — इस प्रक्रिया को sedimentation कहा जाता है।
इस प्रक्रिया में neutral pH और सामान्य तापमान पर Coronavirus surrogate और Infectious Bronchitis Virus (IBV) जैसे वायरस के कणों का परीक्षण किया गया, जिससे सफल परिणाम प्राप्त हुए।
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मौजूदा परीक्षण विधियों से तुलना
वर्तमान में इस्तेमाल होने वाली तकनीकें जैसे कि RT-PCR, प्लाक एसे, एंटीजन टेस्ट या एंटीबॉडी टेस्ट — या तो बहुत महंगी हैं, या फिर कम सटीक या समय लेने वाली। वहीं यह नई clay based COVID detection तकनीक न केवल तेज है बल्कि बेहद सस्ती और सटीक भी है।

“जैसे हम बालू को पानी में बैठते हुए देखते हैं, वैसे ही अब हम वायरस की उपस्थिति को क्ले की मदद से देख सकते हैं। यह तकनीक न केवल लागत कम करती है बल्कि महामारी के दौरान तेज और आसान टेस्टिंग को संभव बनाती है।”
– प्रोफेसर टी.वी. भरत, शोधकर्ता
प्रोफेसर टी.वी. भरत यह भी बताया कि यह शोध उनके पिछले कार्यों का हिस्सा है जिसमें उन्होंने biomedical waste के सुरक्षित निपटान के लिए भी तकनीकें विकसित की हैं, जिसे DST, भारत सरकार द्वारा समर्थन मिला है।
और भी वायरस की पहचान संभव
इस तकनीक को भविष्य में Newcastle Disease Virus (NDV) जैसे अन्य वायरस के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे खासकर पोल्ट्री उद्योग को बड़ा लाभ मिलेगा।
भविष्य की योजना
शोधकर्ता अब इस तकनीक को औद्योगिक भागीदारों और चिकित्सा संस्थानों के साथ मिलकर क्लिनिकल ट्रायल में ले जाना चाहते हैं, ताकि इसका प्रायोगिक मूल्यांकन हो सके और यह आम जन तक पहुंच सके।