Aiims Delhi के विशेषज्ञों के अध्ययन में सामने आई हैरान करने वाली जानकारी
नई दिल्ली। एम्स (Aiims Delhi) ने राजधानी के युवाओं की सेहत को लेकर एक बडा खुलासा किया है। मामला जोडों के दर्द से संबंधित है। एम्स ने अपने एक अध्ययन के निष्कर्ष के हवाले से चौंकाने वाली जानकारी का खुलासा किया है। जोडों का दर्द (Joint Pain) आमतौर पर ऑटोइम्यून डिसऑर्डर की वजह से होता है लेकिन यहां कहानी थोडी अलग है।
दिल्ली के युवा ऑटोइम्यून डिसऑर्डर (Autoimmune Disorder) की वजह से जोडों के दर्द की चपेट में नहीं आ रहे है बल्कि इसके लिए उनका मोबाइल फोन जिम्मेदार है। एम्स (Aiims Delhi) विशेषज्ञों ने इस मामले में चिंता जताई है। साथ ही यह भी कहा है कि युवाओं को अपने जीवनशैली को लेकर गंभीरता बरतनी चाहिए। दिल्ली के युवाओं में जोडों के दर्द से संबंधित आंकडे आने वाले समय में इसकी गंभीरता को समझने के लिए काफी हैं।
सबसे ज्यादा युवा गर्दन की दर्द से परेशान

एम्स (Aiims Delhi) के इस अध्ययन में बताया गया है कि दिल्ली के 58 प्रतिशत युवा किसी न किसी प्रकार के जोड़ों के दर्द (Joint Pain) से परेशान हैं। इनमें से 56 प्रतिशत युवाओं को गर्दन दर्द की समस्या है। 29 प्रतिशत कंधों के दर्द से कठिनाई में हैं। जबकि, 27 प्रतिशत युवा को रीढ़ की हड्डी और लोअर बैक पेन (lower back pain) का सामना कर रहे हैं।
Also Read : World Cup 2023 में आधिकारिक चिकित्सा भागीदार बना यह प्राइवेट अस्पताल
नौ प्रतिशत युवाओं को घुटनों और कलाइयों में दर्द की समस्या है। एम्स विशेषज्ञों ने इस अध्ययन में ऐसे 510 लोगों को शामिल किया है, जो 6 घंटे या उससे ज्यादा समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं। युवाओं के जोडों के दर्द का सबसे बडा कारण मोबाइल का अध्यधिक उपयोग बताया गया है।
इस तरह मोबाइल बनता है जोडों में दर्द की वजह
एक वयस्क इंसान के सिर का वजन आमतौर पर 4 से 5 किलो होता है। जब हम झुकते हैं तब गर्दन का वजन रीढ की हड्डी पर पडता है। मोबाइल की स्क्रीन देखने के लिए गर्दन 15 डिग्री नीचे झुकाते हैं तब रीढ की हड्डी पर गर्दन का वजन तीन गुना तक बढ जाता है। देर तक मोबाइल की स्क्रीन को गर्दन झुकाकर देखने की वजह से गर्दन 60 डिग्री तक भी झुक जाती है।
गर्दन 60 डिग्री तक झुकने से सिर का सामान्य वजन (4 से 5 किलो) बढकर 25 किलो से अधिक हो जाता है। जिससे रीढ की हड्डी पर अत्यधिक दवाब पैदा होता है। इससे स्पाइन की संरचना (spine structure) विकृत होने या जोडों में सूजन की स्थिति भी पैदा हो सकती है। जो बाद में चलकर ज्वाइंट पेन या स्थाई विकृति का भी रूप ले सकती है।
अध्ययन में विशेषज्ञ कर रहे हैं जेनेटिक कारणों से इंकार
एम्स (Aiims Delhi) के इस अध्ययन में यह बात निकलकर सामने आई है कि जोड़ों के दर्द (Joint Pain) को आमतौर पर जेनेटिक (genetic disease) समझा जाता है लेकिन अध्ययन में शामिल होने वाले लोगों की बीमारी के लिए जेनेटिक कारणों को जिम्मेदार नहीं पाया गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक 60 प्रतिशत लोगों को मोबाइल फोन के अत्यधिक इस्तेमाल करने और खराब जीवनशैली की वजह से जोडों में दर्द जैसी परेशानियां हो रही है। मेडिकल साइंस की भाषा में इसे रूमेटाइड अर्थराइटिस (rheumatoid arthritis) कहा जाता है।
ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है रूमेटाइड अर्थराइटिस

विशेषज्ञों के मुताबिक रयूमेटॉइड आर्थराइटिस (rheumatoid arthritis) यानी जोड़ों में सूजन और दर्द (swelling and pain in joints) की बीमारी एक ऑटो इम्यून डिसऑर्डर (Autoimmune Disorder) है। इसमें शरीर का इम्यून सिस्टम अपने ही सेल्स और टिश्यू को बाहरी तत्व यानि दुश्मन समझकर हमलावर हो जाता है। इस वजह से ज्वाइंट के बीच मौजूद शॉफ्ट टिश्यू में सूजन पैदा होती है। आगे चलकर यह ज्वाइंट पेन के रूप में तकलीफ देता है और इस वजह से स्थाई रूप से ज्वाइंट खराब भी हो सकती है।
मेडिकल साइंस की भाषा में अगर इसे समझे तो इस बीमारी में Th17 और Treg cell का संतुलन बिगड़ने लगता है। Th17 सेल्स में सूजन आने लगती है और Treg cell, जिन्हें एक्सपर्टस टी सेल्स भी कहते हैं, ये म्यूटेट होने लगते हैं। धीरे-धीरे ये सेल्स बूढ़े होने लगते हैं और इनमें होने वाले बदलावों की वजह से इंसान का डीएनए भी प्रभावित होने लगता है। वर्तमान में इसका स्थाई उपचार उपलब्ध नहीं है लेकिन इसे प्रबंधित कर मरीज के जीवन की गुणवत्ता को बढाई जा सकती है।
नियमित योग से मिल सकता है फायदा
एम्स (Aiims Delhi) के इस अध्ययन में यह साबित हुआ है कि नियमित योग से मोबाइल फोन की वजह से गर्दन में होने वाली अकडन और सूजन यानि गठिया (Arthritis) को सफलतापूर्वक ठीक भी किया जा सकता है। वहीं ऑटोइम्यून डिसऑर्डर की वजह से होने वाले ज्वाइंट पेन (Joint Pain) की स्थिति में भी नियमित रोग से राहत मिल सकती है।
Also Read : Osteoarthritis : युवाओं के घुटनों को तेजी से खराब कर रही है यह बीमारी, ऐसे कर सकते हैं बचाव
एम्स विशेषज्ञों ने अपने अध्ययन में ऐसे 64 लोगों को शामिल किया, जिन्हें गठिया (Arthritis) यानी जोड़ों के दर्द (Joint Pain) की समस्या थी। 8 हफ्तों तक इन 64 में से 32 लोगों को विशेषज्ञ की निगरानी में योग (Yoga) करवाया गया और 32 का इलाज सिर्फ दवाओं के माध्यम से किया गया। हफ्ते में 5 दिन 120 मिनट तक मरीजों को योग करवाया गया।
व्यायाम, प्राणायाम और ध्यान से मिल सकते हैं बेहतर परिणाम
अध्ययन में शामिल मरीजों को कुछ ऐसे साधारण आसन करवाए गए, जिन्हें पहले से जोडों में सूजन की समस्या नहीं थी। इसके अलावा इन्हें नियमित रूप से सूक्ष्म व्यायाम, प्राणायाम और ध्यान भी कराए गए। 8 हफ्तों के बाद इनका एक टेस्ट किया गया। जिसमें योग करने वाले मरीजों के वो सेल्स बेहतर पाए गए, जो बीमारी के वजह से एजिंग यानी बुढ़ापे से प्रभावित हो जाते हैं।
यहां यह भी पाया गया कि योग करने से सूजन के लिए जिम्मेदार सेल्स भी सेहतमंद होने लगे। जिससे सूजन के स्तर में भी कमी आ गई। एम्स में एनोटॉमी विभाग की प्रोफेसर डॉ. रीमा दादा ने बताया कि दवाओं के साथ योग का प्रयोग ऐसे मरीजों में बेहतर परिणाम दे रहे हैं।
रूमेटाइड अर्थराइटिस की 40 प्रतिशत वजह खुद बनता है इंसान

एम्स में रूमेटोलॉजी (rheumatology) विशेषज्ञ डॉ. उमा कुमार के मुताबिक जोडों में दर्द होने की 40 प्रतिशत मामलों में वजह इंसान के खुद की जीवनशैली होती है। यह बीमारी जेनेटिक और ऑटोइम्यून डिसऑडर्स की वजह से भी हो सकती है। जबकि, 60 प्रतिशत कारणों को समय रहते ठीक भी किया जा सकता है।
इनमें से अधिकतर कारण जीवनशैली से ही जुडे होते हैं। इनमें मोबाइल फोन और लैपटॉप्स जैसे गैजेट्स का अत्यधिक इस्तेमाल, गलत तरीके से बैठकर काम करना, ऑफिस में कुर्सी पर देर तक बैठकर काम करना, मोटापा और गलत खाने की आदतें शामिल हैं।
Also Read : नपुंसकता खत्म कर देगी 8 टांगों वाली यह मकड़ी
क्या है इसका समाधान
- दोनों हाथों को जोड़कर माथे पर रखें।
- हाथों से सिर को पीछे की ओर धकेलें जबकि अपनी ताकत से सिर को आगे की ओर धकेलें।
- नियमित रूप से व्यायाम और योग करें।
- सूजन वाले आहार को लेने से बचें। अगर 20 मिनट लगातार स्क्रीन पर समय बिता रहे हैं तो कम से कम 2 मिनट का ब्रेक अनिवार्य तौर पर लें।
- कुर्सी पर बैठे-बैठे गर्दन को बाएं से दाएं और दाएं से बाएं धीरे-धीेरे घुमाएं।
- कान को कंधे से छूने की कोशिश करें।
- शराब और धुम्रपान से दूर रहें।
- शरीर में विटामिन डी, विटामिन बी 12 और कैल्शिम की जरूरी स्तर बनाएं रखें।
- जरूरत के मुताबिक पानी पिएं
- जरूरत के मुताबिक नींद लें।
[table “5” not found /]