कई Antibiotics हो रहे हैं बेअसर, एंटीवायरल और एंटीफंगल दवाओं का भी कम होने लगा है असर
नई दिल्ली। एंटिबायोटिक्स (Antibiotics) के असर को लेकर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। आईसीएमआर (ICMR) ने रिपोर्ट के जरिए यह खुलासा किया है कि कई एंटिबायोटिक (Antibiotics) दवाओं के प्रति प्रतिरोध पैदा हो जाने की वजह से यह धीरे-धीरे बेअसर साबित हो रही है।
आईसीएमआर (ICMR) ने जानकारी दी है कि निमोनिया और सेप्सिस के उपचार में दी जाने वाले एंटीबायोटिक कार्बापेनम (antibiotic carbapenem) अब अपना असर खो रही है। देशभर के ज्यादातर मरीजों पर इस दवा का असर नहीं हो रहा है। एंटीमाइक्रोबियल दवाओं (antimicrobial drugs) के दुरूपयोग से नई समस्या पैदा हो सकती है। एंटीबायोटिक्स के अलावा एंटीफंगल (antifungal) और एंटीवायरल (antiviral) दवाएं भी अपना असर खो सकती है।
ICMR ने अस्पतालों से किया डेटा इकट्ठा
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने 1 जनवरी से 31 दिसंबर, 2022 के बीच देश के 21 अस्पतालों से डेटा इकट्ठा किया है। अस्पताल में होने वाले संक्रमणों के विश्लेषण के लिए आईसीयू रोगियों के लगभग 1 लाख कल्चर आइसोलेट्स (culture isolates) का अध्ययन किया गया। इसमें 1,747 पैथोजन (Pathogen) मिले। जिनमें सबसे आम बैक्टीरिया ईकोलाई (bacteria E.coli) पाया गया। एक अन्य बैक्टीरिया क्लेबसिएला निमोनिया (bacteria klebsiella pneumoniae) की भी पुष्टि हुई।
2017 तक नियंत्रण में थी स्थिति
आईसीएमआर की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2017 में दवा प्रतिरोधी ई-कोलाई संक्रमण (Drug-resistant E. coli infection) वाले 10 में से 8 मरीजों पर कार्बापेनम (carbapenem) असरदार पाया गया था। जबकि, वर्ष 2022 में इस दवा को केवल 6 मरीजों पर ही असरदार पाया गया है। बैक्टीरिया क्लेबसिएला निमोनिया के दवा प्रतिरोधी होने से संक्रमणों के साथ स्थिति चुनौतिपूर्ण हो गई है।
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2017 में 10 में से 6 मरीजों पर यह दवा असर कर रही थी लेकिन बेहद नाटकीय ढंग से 2022 में केवल 4 मरीजों पर ही यह दवा अपना असर दिखा पाई। अध्ययन के मुख्य लेखकों में से एक, आईसीएमआर की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कामिनी वालिया (Senior Scientist Dr. Kamini Walia) के मुताबिक, ‘भले ही विदेशों में विकसित एंटीबायोटिक दवाएं ई-कोलाई के उपचार के लिए आयात की जाती हैं लेकिन उनमें से कुछ दवाएं भारत में मौजूद ई-कोलाई स्ट्रेन के खिलाफ बेअसर साबित होती है।
सुपरबग के खिलाफ एंटीबायोटिक विकसति करने के हो रहे हैं प्रयास
डॉ. वालिया के मुताबिक वर्ष 2022 की रिपोर्ट में भारत में व्यापक एंटी माइक्रोबियल प्रतिरोध (broad anti-microbial resistance) के बीच कुछ उत्साहजनक परिणाम भी सामने आए हैं। पिछले 5 से 6 वर्षों में प्रमुख सुपरबग (superbug) के प्रतिरोध पैटर्न में किसी तरह का बदलाव अभी तक नहीं पाया गया है। यहां इनके मामलों में गिरावट नहीं पाया जाना कुछ हदतक चिंता पैदा करता है। इसके अलावा, वैज्ञानिकों ने सभी सुपरबग्स में प्रतिरोध के लिए एक आणविक तंत्र (Molecular Mechanism) की तलाश की है।
डॉ. वालिया के मुताबिक, ‘वैज्ञानिकों को यह जानकारी मिली है कि एनडीएम (New Delhi metallo-beta-lactamase) अक्सर मल्टी ड्रग प्रतिरोधी स्यूडोमोनास (pseudomonas) के आइसोलेट्स (Isolates) में पाया जाता है। यह अपने आप में एक अनोखी घटना है और यह केवल भारत में ही पाया जाता है। इससे भारतीय एंटीबायोटिक डेवलपर्स को देश की जरूरतों के मुताबिक नई दवाएं विकसित करने में मदद मिल सकती है।
रोकना होगा एंटीमाइक्रोबियल दवाओं का दुरुपयोग
विशेषों का कहना है कि एंटीमाइक्रोबियल दवाओं (antimicrobial drugs) के अंधधुंध उपयोग से प्रतिरोधी स्थिति (resistant state) पैदा हो गई है। डॉ. वालिया के अनुसार, डायरिया के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सामान्य दवाएं जैसे नॉरफ्लॉक्स (norflox) या ओफ्लॉक्स (Oflox) का प्रभाव अब उतना नहीं रह गया है।
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दरअसल, अगर कोई नई दवा विकसित कर भी लेते हैं और उनका भी अंधाधुंध प्रयोग किया जाएगा, तब उसकी स्थिति कार्बापेनम की तरह हो जाएगी। कुछ समय के बाद नई दवा के खिलाफ भी प्रतिरोध पैदा हो जाएगा। जिससे इनके असर करने की क्षमता प्रभावित होगी। पश्चिम में किसी भी एंटीमाइक्रोबियल दवाओं के प्रति 10 से 20 प्रतिशत के बीच प्रतिरोध स्तर को चिंताजनक माना जाता है। जबकि, भारत में डॉक्टर 60 प्रतिशत प्रतिरोध की रिपोर्ट होते हुए भी इन दवाओं को लिख देत हैं। डॉ. वालिया के मुताबिक डॉक्टरों के पर्चों को पहले से अधिक गंभीरता से लेने की जरूरत है।
बेहतर इंफेक्शन कंट्रोल सिस्टम विकसित करने की जरूरत
इस मामले को लेकर डॉक्टरों का मानना है कि देश में संक्रमण नियंत्रण तंत्र (infection control system) को और बेहतर और प्रभावी बनाने की जरूरत है। ऐसे करने से प्रतिरोधी मामलों में सुधार होगा। अस्पतालों में इसके लिए जांच की व्यवस्था होनी चाहिए। कोई विशेषज्ञ अगर किसी मरीज को व्यापक-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक (broad-spectrum antibiotic) लिखते हैं, तो इसकी निगरानी होनी चाहिए।
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