समय रहते ऑटोइम्यून बीमारियों (Autoimmune Disease/Disorder) का उपचार (Treatment) जरूरी
Health News, Health Tips, LifeSytle Tips, Health Research News in Hindi : भारत में ऑटोइम्यून बीमारियां (Autoimmune Diseases in India) बडी समस्या साबित हो सकती है। जिस युवा शक्ति के दम पर देश विकास की नई गाथा लिखने के संपने संजो रहा है, उसकी इसी शक्ति को ऑटोइम्यून बीमारियां (Autoimmune Disorders) कमजोर कर रही है।
समय रहते अगर इन बीमारियों के उपचार (Treatment of Autoimmune Diseases) के लिए उचित व्यवस्था (Proper Management for Autoimmune Disorders) और रणनीति (Strategies for Autoimmune Disorders) तैयार नहीं की गई तो यह बीमारियां देश के विकास के साथ अर्थव्यवस्था (Economy with Growth) के लिए भी चुनौती पैदा कर सकती हैं।
क्या होती है ऑटोइम्यून बीमारी? (What is Autoimmune Disease ?)
ऑटोइम्यून बीमारियां (Autoimmune Disorders) वे स्वास्थ्य स्थितियां हैं, जिसमें शरीर की इम्यून प्रणाली (Immune System) भ्रमित होकर अपने ही शरीर के स्वस्थ ऊतकों (Healthy Tissues) पर हमला करने लगती है। इन बीमारियों से शरीर को कोई भी अंग प्रभावित हो सकता है।
इनके लक्षण (Symptoms of autoimmune diseases) मरीज के जीवन की गुणवत्ता (Patient’s Quality of Life) को गहराई से प्रभावित करते हैं। भारत में ऑटोइम्यून बीमारियों के मरीजों की संख्या (Number of patients with autoimmune diseases in India) लगातार बढ़ रही है, लेकिन इस गंभीर स्वास्थ्य मुद्दे के समाधान (Solution for autoimmune disorders) के लिए जागरूकता और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की अत्यधिक आवश्यकता है।
भारत में ऑटोइम्यून बीमारियों की स्थिति (Status of Autoimmune Diseases in India)
प्रमुख ऑटोइम्यून बीमारियां (Major Autoimmune Disorders)
बीमारियां | प्रभावित अंग/प्रणाली |
---|---|
रूमेटॉयड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) | ज्वाइंट |
ल्यूपस (Systemic Lupus Erythematosus - SLE) | त्वचा, किडनी, दिल |
एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (Ankylosing Spondylitis) | बिग ज्वाइंट्स, (स्पाइन और हिप) |
सोरायसिस (Psoriasis) | त्वचा |
हाशिमोटो थायरॉयडिटिस (Hashimoto's Thyroiditis) | थायरॉयड ग्रंथि |
टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 Diabetes) | अग्न्याशय |
मल्टीपल स्केलेरोसिस (Multiple Sclerosis) | मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड |
इन्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज (Inflammatory Bowel Disease - IBD) | पाचन तंत्र |
स्जोग्रेन सिंड्रोम (Sjögren's Syndrome) | ग्रंथियां |
सोरायटिक आर्थराइटिस (Psoriatic Arthritis) | त्वचा और जोड़ |
ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस (Autoimmune Hepatitis) | लिवर |
भारत में मरीजों की संख्या (Number of Patients in India)
अलग-अलग रिपोर्ट और अध्ययनों के अनुसार, भारत में ऑटोइम्यून बीमारियों से प्रभावित मरीजों की संख्या (Number of patients affected by autoimmune diseases in India) अनुमानित रूप से 20 से 25 मिलियन के करीब हो सकती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर इन बीमारियों से संबंधित आंकडों को देशव्यापी स्तर इकट्ठा करने की पहल की जाए, तो इनके आंकडे अनुमान से भी कहीं अधिक पाए जा सकते हैं।
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हालांकि, मरीजों के आंकड़ों को पूरी तरह से सत्यापित करने के लिए व्यापक और को पूरी तरह से सत्यापित करने के लिए व्यापक और अपडेटेड डेटा की आवश्यकता है लेकिन इनमें से ज्यादातर बीमारियों के डेटा संग्रह की व्यवस्था या रजिस्टरी भारत में उपलब्ध नहीं है।
स्रोत * मीडिया रिपोर्ट्स, रिसर्च पेपर, संबंधित लेख इत्यादि।
युवाओं को विकलांग बना रही है ऑटोइम्यून बीमारियां (Autoimmune Diseases are Making Young People Disabled)
ऑटोइम्यून बीमारियों (Autoimmune Disorder) की वजह से शरीर का कोई न कोई महत्वपूर्ण अंग या प्रणाली (Vital Organs or Systems) प्रभावित होती है। समय पर अगर इन बीमारियों का उपचार (Treatment of Autoimmune Diseases) नहीं किया जाए, तो एडवांस स्थिति (Advanced Stage) में पहुंचकर मरीज विकलांग (Disabled) हो जाता है।
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यहां ध्यान देने की बात यह है कि ज्यादातर ऑटोइम्यून बीमारियां 15 से 45 वर्ष के आयु वर्ग को प्रभावित करती हैं (Autoimmune Disorder Affect the age group of 15 to 45 years)। उदाहरण के लिए – एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (Ankylosing Spondylitis) ऑटोइम्यून श्रेणी की एक इंफ्लेमेटरी डिस्ऑर्डर (An Inflammatory Disorder of the Autoimmune Category) है।

जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली (Immune System) मरीजों के जोडों के बीच मौजूद स्वस्थ उत्तकों (Healthy Tissue Between Joints) को प्रभावित करती है। नतीजतन, इन उत्तकों में सूजन (Inflammation in Tissues) की समस्या होती है और मरीज असहनीय दर्द (Unbearable Pain) का अनुभव करता है।
इस बीमारी (Ankylosing Spondylitis) का अगर नियमित और आवश्यक उपचार (Routine and Necessary Treatments) समय रहते न किया जाए, तो मरीज के शरीर के सभी बडे जोड (All Major Joints of the Body), विशेषतौर से स्पाइन और हिपज्वाइंट (Spine and Hip Joints) फ्यूज (Fuse) हो जाते हैं। इसकी वजह से मरीज के शरीर में संरचनात्मक नुकसान (Structural Damage) होता है और मरीज महज 20 से 35 वर्ष की आयु में ही विकलांग हो जाता है।
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इस बीमारी का प्रभाव (Effects of Ankylosing Spondylitis) केवल मरीजों के शरीर पर ही नहीं होता बल्कि इसका सीधा असर उनकी आर्थिक (Economic), सामाजिक और पारिवारिक जीवन (Social and Family) पर पडता है। उनके जीवन की गुणवत्ता (Quality of Life of Ankylosing Spondylitis Patients) इस कदर प्रभावित हो जाती है कि वह सक्रिय रहकर उपलब्धियां हासिल करने की उम्र में अपने परिजनों पर आश्रित हो जाता है। यह एक ऑटोइम्यून बीमारी (Autoimmune Disease) तो केवल बानगी भर है। इस श्रेणी की बीमारियों से बेशक मरीज की मौत नहीं होती है लेकिन यह बीमारियां उनकी जिंदगी को ‘जिंदा रहते ही नर्क से बदतर’ बना देती हैं।
नहीं मिलती है स्वास्थ्य बीमा की सुरक्षा (No Health Insurance Protection is Available)
ऑटोइम्यून बीमारियों में से ज्यादातर (most of the autoimmune diseases) ऐसे हैं, जिनके उपचार के लिए स्वास्थ्य बीमा की कवर प्रदान नहीं की जाती (Health insurance Cover is Not Provided for the Treatment) है। इन बीमारियों के लक्षणों को प्रबंधित करने वाली सामान्य और एडवांस दवाइयों की कीमत (Cost of Common and Advanced Symptom Management Medicines) बेहद अधिक होने से वह आम मरीजों की पहुंच से दूर हैं।
आर्थिक लाचारी के कारण मरीजों को बीच में ही उपचार छोडना पडता है। जिसका नतीजा स्थाई विकलांगता (Permanent Disability) के रूप में प्रकट होता है। ध्यान देने की बात यह है कि इन बीमारियों के विशेषतौर से प्रशिक्षत रूमेटोलॉजिस्टों की तादाद (Number of Trained Rheumatologists) भी बेहद सीमित है। सूदूर और ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों के लिए रूमेटोलॉजिस्ट ढूढना बहुत बडी चुनौती होती है।
भारत में ऑटोइम्यून बीमारियों से निपटने की चुनौतियां (Challenges in Tackling Autoimmune Diseases in India)
1. जागरूकता की कमी (Lack of Awareness)
- मरीजों और चिकित्सकों के बीच ऑटोइम्यून बीमारियों की पहचान और प्रबंधन (Identifying and Managing Autoimmune Disorders) को लेकर जागरूकता की कमी है।
- शुरुआती लक्षण (Early Symptoms) अक्सर अनदेखे रह जाते हैं, जिससे बीमारी का सही समय पर इलाज (Treatment of disease at right time) नहीं हो पाता है।
2. विशेषज्ञता की कमी (Lack of Expertise)
- ऑटोइम्यून बीमारियों के इलाज के लिए रूमेटोलॉजिस्ट (Rheumatologist), इम्यूनोलॉजिस्ट (Immunologist) और अन्य विशेषज्ञों की संख्या बेहद कम है।
- इन बीमारियों के उपचार के लिए विभिन्न तरह के विशेषज्ञता समूह (Different Types of Specialization Groups) की जरूरत होती है।
3. सुविधाओं का अभाव (Lack of Facilities)
- ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में निदान और इलाज के लिए पर्याप्त सुविधाएं (Adequate Facilities for Diagnosis and Treatment) और मूलभूत ढांचा नहीं हैं।
- उन्नत जांच (Advanced Detection) और बायोलॉजिकल उपचार (Biologic Treatments) तक मरीजों की पहुंच सीमित है।
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4. महंगे उपचार और दवाएं (Expensive Treatments and Medications)
- बायोलॉजिकल और इम्यूनोमोड्यूलेटरी (Biologicals and Immunomodulatory) दवाएं बेहद महंगी होती हैं, जो अधिकांश मरीजों की पहुंच से बाहर हैं।
5. डेटा का अभाव (Lack of Data)
- ऑटोइम्यून बीमारियों के प्रभाव और प्रसार (Effects and Prevalence of Autoimmune Diseases) पर राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक डेटाबेस (Nationally Comprehensive Database) नहीं है।
सुधार के लिए आवश्यक कदम (Steps Needed to Improve)

1. जागरूकता अभियान चलाना (Conducting Awareness Campaigns)
सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाने चाहिए। स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थलों पर स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन किया जा सकता है।
2. विशेषज्ञता में वृद्धि (Increase in Specialisation)
मेडिकल शिक्षा में ऑटोइम्यून बीमारियों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। रूमेटोलॉजी और इम्यूनोलॉजी में विशेषज्ञता वाले डॉक्टरों की संख्या (Number of Doctors Specializing in Rheumatology and Immunology) बढ़ाने के लिए प्रयास किए जाएं। इन बीमारियों के प्रभावी उपचार विधि (Effective Treatment Method for Diseases) हासिल करने के लिए व्यापक स्तर पर शोध और आध्ययन कार्यों (Research and Study Work) को समर्थन देने की जरूरत है।
3. डायग्नोस्टिक सुविधाओं का विस्तार (Expansion of Diagnostic Facilities)
ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में उन्नत डायग्नोस्टिक सुविधाएं (Advanced Diagnostic Features) स्थापित की जाए।
सूदूर और ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों के लिए टेलीमेडिसिन (Telemedicine) और डेडिकेटेड मोबाइल हेल्थ क्लिनिक (Dedicated Mobile Health Clinic) का उपयोग किया जा सकता है।
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4. सस्ती दवाओं की उपलब्धता (Availability of Affordable Medicines)
सरकार को ऑटोइम्यून बीमारियों के इलाज में उपयोग होने वाली दवाओं की कीमत (Cost of Drugs Used to Treat Autoimmune Diseases) को इस प्रकार निर्धारित करनी चाहिए, जिससे यह आम मरीजों तक आसानी से पहुंच सके।
जेनेरिक दवाओं का उत्पादन और वितरण (Production and Distribution of Generic Drugs) की रफ्तार बढ़ाई जानी चाहिए।
5. डेटा संग्रह और शोध (Data Collection and Research)
राष्ट्रीय स्तर (National Level) पर ऑटोइम्यून बीमारियों का डेटाबेस (Database of Autoimmune Diseases) तैयार किया जाए। शोध और अनुसंधान (Theses and research)को बढ़ावा देने के लिए फंडिंग की व्यवस्था (Fund Arrangements) की जाए।
6. स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का विस्तार (Expansion of Health Insurance Plans)
ऑटोइम्यून बीमारियों को कवर करने वाली स्वास्थ्य बीमा (Health Insurance Covering Autoimmune Diseases) योजनाएं लागू की जाएं। आयुष्मान भारत (Ayushman Bharat) जैसी योजनाओं में इन बीमारियों को शामिल किया जाना चाहिए।
भारत के हेल्थ सिस्टम में आवश्यक सुधार (Reforms Required in India’s Health System)
1. सुधार की प्राथमिकताएं (Priorities for Reform)
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ऑटोइम्यून बीमारियों के निदान और प्रबंधन (Diagnosis and Management of Autoimmune Diseases in Primary Health Centres) की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। उन्नत परीक्षण उपकरण (Advanced Testing Equipment) और प्रशिक्षित कर्मचारियों की उपलब्धता (Availability of Trained Staff) सुनिश्चित की जाए।
2. नए उपचार विकल्प (New Treatment Options)
भारत में ऑटोइम्यून और जेनेटिक बीमारियों के उपचार के लिए बॉयोलॉजिकल दवाओं और उपयोगी मेडिकल थेरेपी (Biologic Drugs and Useful Medical Therapies for the Treatment of Autoimmune and Genetic Diseases) की पहुंच को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है।
3. स्वास्थ्य प्रणाली का डिजिटलीकरण (Digitalization of the Health System)
ऑटोइम्यून बीमारी के तहत आने वाली सभी बीमारियों (All Diseases that Come Under Autoimmune Disorders) से पीडित मरीजों के लिए डिजिटल हेल्थ रिकॉर्ड की व्यवस्था (Provision of Digital Health Records) की जाए। हेल्थकेयर सिस्टम (Healthcare System) को पूरी तरह से डिजिटलीकरण (Digitization) करके प्रभावी ट्रैकिंग और प्रबंधन (Effective Tracking and Management) किया जा सकता है।
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4. सार्वजनिक और निजी भागीदारी (Public and Private Partnerships)
सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच भागीदारी को बढ़ावा दिया जाए। नई टेक्नोलॉजी (New technology) और संसाधनों (Resources) को साझा करने के लिए समझौते किए जा सकते हैं।
निष्कर्ष
भारत में ऑटोइम्यून बीमारियां (Autoimmune Disorders in India) गंभीर स्वास्थ्य चुनौती बनती जा रही है। इन बीमारियों से निपटने के लिए व्यापक जागरुकता, उन्नत चिकित्सा सुविधाएं और सरकारी सहयोग की आवश्यकता है। साथ ही, मरीजों के लिए सस्ती और सुलभ इलाज सुनिश्चित करने के लिए सरकारी और निजी क्षेत्रों को मिलकर काम करने की जरूरत है।