रविवार, नवम्बर 2, 2025
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Fetal Donation in AIIMS: ममता का महादान, मानवता का कल्याण 

एक मां ने अपने भ्रूण को सिर्फ इसलिए दान कर दिया क्योंकि उनका यह कदम आने वाले समय में 'जेनेटिक बीमारियों' से लड़ रहे लाखों लोगों के लिए उम्मीद के दरवाजे खोल सकता है, जो भारी शारीरिक पीड़ा सकते हुए प्रभावी उपचार के खोजे जाने के इंतजार में टकटकी लगाए बैठे हैं।

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 दिल्ली में जैन परिवार ने मानवता की मिसाल में बदला अपना दुख

नई दिल्ली। Fetal Donation in AIIMS : कुछ दुख ऐसे होते हैं, जिसे सहने के लिए चट्टान जैसा कलेजा चाहिए। वे बिरले ही होते हैं जो कलेजे को चीर देने वाली तकलीफ में भी स्थिर रहकर जगत कल्याण और मानव धर्म की मिसाल कायम करते हैं। दिल्ली के एक जैन परिवार (Jain family Delhi) ने ऐसी ही एक मिसाल पेश की है, जिसके बाद दान के इतिहास (rare donation india) में उनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया है। इस परिवार ने एक ऐसा दान किया है, जिसे ‘महादान’ से कम नहीं समझा जा सकता है।

Delhi AIIMS में पहली बार हुआ Fetal Donation

Fetal Donation in AIIMS जैसा पहला ऐतिहासिक उदाहरण 7 सितंबर 2025 को दिल्ली एम्स ( Delhi AIIMS) में देखने को मिला। जो न केवल ऐतिहासिक है बल्कि चिकित्सा विज्ञान के लिए अद्भुत आशा की किरण साबित हो सकती है। एक मां ने अपने भ्रूण को सिर्फ इसलिए दान कर दिया क्योंकि उनका यह कदम आने वाले समय में जेनेटिक बीमारियों (Genetic Disease Reasearch) से लड़ रहे लाखों लोगों के लिए उम्मीद के दरवाजे खोल सकता है, जो भारी पीड़ा सकते हुए प्रभावी उपचार के खोजे जाने के इंतजार में टकटकी लगाए बैठे हैं।

Fetal Donation in AIIMS: दधीची देहदान समिति बना मागदर्शक

भ्रूण के इस महादान (Fetal Donation By Jain Family ) की प्रक्रिया में दधीची देहदान समिति (DDDS) ने महत्वपूर्ण मागदर्शक की भूमिका निभाई। इस कदम से चिकित्सा शोध (medical research india) व शिक्षा के लिए नयी राह खुलेगी, साथ ही लाखों लोगों को यह संदेश भी मिला कि दुःख के क्षण में भी इंसान समाज को अमूल्य उपहार दे सकता है। 32 वर्षीय वंदना जैन (Vandana Jain Embryo Donor) ने गर्भावस्था के पांचवें महीने में अपना भ्रूण खो दिया, लेकिन जैन परिवार ने अपने गहरे दुःख को मानवता और विज्ञान के लिए योगदान में बदल दिया।

AIIMS Hospital Delhi में इतिहास का निर्माण

दिल्ली के एम्स अस्पताल में यह पहला मौका था जब किसी परिवार ने भ्रूण दान (Fetal Donation in AIIMS) करना स्वीकार किया और इसके लिए बहुत बडा हौसला और दिल चाहिए । सुबह 8 बजे दधीची देहदान समिति (Dadhichi body donation committee) के उपाध्यक्ष सुधीर गुप्ता को यह सूचना मिली।

उन्होंने तुरंत पहल करते हुए समिति के स्वयंसेवकों, एम्स प्रशासन (AIIMS Administration) और चिकित्सकों के साथ मिलकर जरूरी कानूनी और प्रशासनिक औपचारिकताएँ पूरी करवाईं। दिनभर की लगातार मेहनत और समन्वय के बाद शाम 7 बजे सफलतापूर्वक यह भ्रूण दान प्रक्रिया (Fetal donation process AIIMS) पूरी की गई।

Sudhir Gupta DDDS

“यह परिवार के लिए आसान निर्णय नहीं था लेकिन उन्होंने अपने दुःख को मानवता की सेवा में बदल दिया। इसका असली श्रेय जैन परिवार की इस अद्वितीय साहस को जाता है।”

– सुधीर गुप्ता, उपाध्यक्ष, दधीची देहदान समिति

क्यों महत्वपूर्ण है Fetal Donation

भारत में अब तक Organ Donation और Body Donation की चर्चा मुख्य रूप से होती रही है। हजारों लोग आंखें, अंग और मृत्यु के बाद पूरा शरीर दान करने की शपथ पहले ही ले चुके हैं, लेकिन भ्रूण दान की घटना (Fetal Donation in AIIMS) लगभग अभूतपूर्व है।
  • भ्रूण का प्रयोग मेडिकल रिसर्च और शिक्षा दोनों में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
  • मेडिकल छात्र और शोधकर्ता वास्तविक संरचना को समझने और नई चिकित्सा विधियों पर अध्ययन करने के लिए ऐसे दान का उपयोग कर पाएंगे।
  • इससे भावी चिकित्सकों की शिक्षा में भी वैचारिक और व्यावहारिक आयाम जुड़ेंगे।
Prof. Dr. Subrata Basu Ray AIIMS

“यह दान रिसर्च और मेडिकल शिक्षा (human anatomy study) के लिए नए अवसर खोलेगा। जैन परिवार का साहस वास्तव में समाज और विज्ञान के लिए अनमोल योगदान है।”

– प्रो. डॉ. सुब्रत बसु रे, HOD Anatomy Department, Delhi AIIMS

Fetal Donation in AIIMS: जैन परिवार का साहस: दुख से उपजी रोशनी

32 वर्षीय वंदना जैन का गर्भपात पांचवें महीने में हुआ। उस दुखद क्षण में जहाँ कोई भी परिवार शोक में डूबा रहता, वहीं जैन परिवार ने समाज और चिकित्सा विज्ञान को योगदान देने का रास्ता चुना। इस घटना (Fetal Donation in AIIMS) ने यह दिखाया कि Compassion (करुणा), Courage (साहस) और Commitment (प्रतिबद्धता) यदि साथ आ जाएं, तो साधारण लोग भी समाज में असाधारण बदलाव ला सकते हैं।

भ्रूण दान प्रक्रिया (Fetal Donation Process AIIMS)

जी.पी. त्यागल ने दधीची देहदान समिति से संपर्क किया।

उपाध्यक्ष सुधीर गुप्ता ने तुरंत एम्स अधिकारियों और समिति की टीम से तालमेल बैठाया।

परिवार की सहमति, मेडिकल दस्तावेज और कानूनी आवश्यकताओं को पूरा किया गया।

एम्स की एंटॉमी डिपार्टमेंट ने उचित सुरक्षित प्रक्रिया के साथ भ्रूण को संग्रहित किया।

इस ऐतिहासिक पहल को सफलतापूर्वक संपन्न किया गया।

निष्कर्ष

Fetal Donation in AIIMS भारत के चिकित्सा इतिहास में एक नया अध्याय है। जैन परिवार ने दुख को सेवा में बदलकर समाज और आने वाली पीढ़ियों को एक अमूल्य उपहार दिया है। यह घटना न केवल मेडिकल रिसर्च और एजुकेशन को सशक्त बनाएगी, बल्कि आमजन को भी प्रेरित करेगी कि दान सिर्फ मृत्यु के बाद ही नहीं, बल्कि कठिन परिस्थितियों में भी समाज को बड़ा योगदान दे सकता है।

जिज्ञासा : Fetal Donation in AIIMS

Q1. Fetal Donation क्या है?

यह वह प्रक्रिया है जिसमें गर्भावस्था के दौरान हुए दुर्भाग्यपूर्ण गर्भपात के बाद भ्रूण को मेडिकल रिसर्च और शिक्षा के लिए दान किया जाता है।

Q2. AIIMS में Fetal Donation पहली बार कब हुआ?

7 सितंबर 2025 को, दिल्ली के एम्स में पहली बार Fetal Donation सफलतापूर्वक हुआ।

Q3. Fetal Donation in AIIMS ऐतिहासिक दान में कौन जुड़ा था?

जैन परिवार ने भ्रूण दान किया और दधीची देहदान समिति (DDDS) ने इसे संभव बनाया।

Q4. Fetal Donation प्रक्रिया का नेतृत्व किसने किया?

DDDS के उपाध्यक्ष सुधीर गुप्ता ने समन्वय और नेतृत्व की अहम भूमिका निभाई।

Q5. Fetal Donation का उपयोग कहां किया जाएगा?

मेडिकल रिसर्च, रिसर्च प्रोजेक्ट्स और एंटॉमी की शिक्षा में छात्रों एवं वैज्ञानिकों को लाभ मिलेगा। खासकर जेनेटिक और ऑटोइम्यून बीमारियों और स्टेम सेल से संबंधित रिसर्च और अध्ययन में इसकी विशेष उपयोगिता होती है।

अस्वीकरण (Disclaimer)


नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

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Ankur Shukla
Ankur Shuklahttps://caasindia.in
Ankur Shukla: The Journalist Who Strikes a Chord with Words and MusicWith over 13 years of rich experience in journalism, Ankur Shukla has carved a niche for himself as a trusted senior journalist, having served with distinction in several leading dailies. His in-depth reporting, especially on the health beat, has earned him prestigious honors like the Indraprastha Gaurav Award and the Swami Vivekananda Award and many more.But Ankur’s talents go far beyond the newsroom. A passionate Indian classical vocalist and a skilled sitar player he effortlessly blends the art of storytelling with the soul of music. And beyond pen and performance, he wears yet another hat — that of a committed social contributor, working actively for the welfare of autoimmune disease patients across the country.
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