सिर्फ पीठ के बल सुलाने से शिशुओं हो सकता है Flat Head Syndrome
Flat Head Syndrome treatment, Flat Head Syndrome prevention, how to prevent Flat Head Syndrome in infants : शिशुओं को अगर सिर्फ पीठ के बल सुलाते हैं तो यह फ्लैट हेड सिंड्रोम का कारण (Cause of Flat Head Syndrome) बन सकता है। हालांकि, पीठ के बल शिशुओं को सुलाना एक सुरक्षित प्रक्रिया है लेकिन सिर्फ इस तरह सुलाने से समस्या भी हो सकती है। फ्लैट हेड सिंड्रोम को पोजिशनल प्लेगियोसेफाली (Positional Plagiocephaly) भी कहते हैं।
शिशुओं के जन्म के पहले महीने में फ्लैट हेड सिंड्रोम (Flat Head Syndrome) के ज्यादा मामले सामने आते हैं। शिशुओं में होने वाली यह समस्या अधिकांश मामले चिंताजनक नहीं होते और ज्यादातर शिशुओं को इसके लिए उपचार (Flat Head Syndrome treatment) की जरूरत नहीं पडती और यह अपने आप ठीक भी हो जाता है लेकिन मध्यम गंभीर मामले वाले शिशुओं को कॉस्मेटिक उपचार (Flat Head Syndrome treatment) की जरूरत पड सकती है।
फ्लैट हेड सिंड्रोम क्यों होता है?
सिर के चपटे होने का सबसे आम कारण शिशु की नींद की स्थिति है। शिशुओं को प्रतिदिन कई घंटों तक पीठ के बल सुलाया जाता है। इसलिए कई बार सिर एक तरफ से चपटा हो जाता है। ऐसे सिर्फ शिशुओं को सुलाने के कारण ही नहीं होता है बल्कि यह समस्या एक ही पोजिशन में उन्हें कार सीट, कैरियर, स्ट्रोलर, झूले और उछाल वाली सीटों पर बैठाने या सुलाने से भी हो सकती है।
समय से पहले जन्में बच्चों को ज्यादा जोखिम
समय से पहले जन्मे बच्चों का सिर चपटा होने की संभावना अधिक होती है। उनकी खोपड़ी पूर्ण समय में जन्में शिशुओं की तुलना में ज्यादा नरम होती है। इन्हें ज्यादा जोखिम इसलिए भी होता है क्योंकि समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं को अक्सर चिकित्सा ज़रूरतों के लिए नवजात शिशु गहन देखभाल इकाई (NICU) में ज्यादातर समय रखने की जरूरत पड सकती है। ऐसे में इन्हें एक ही पोजिशन में पीठ के बल सुलाया जाता है और इस दौरान इन्हें हिलाया या उठाया नहीं जाता है।
गर्भ में भी हो सकती है यह समस्या
फ्लैट हेड सिंड्रोम जन्म से पहले भी शुरू हो सकता है। अगर गर्भावस्था के दौरान मां के पेल्विस पर अधिक दबाव हो या जुडवा बच्चे हों तो उनकी खोपडी पर दबाव पडने की संभावना बनी रहती है।
गर्दन की मांसपेशियों में जकडन भी बन सकती है वजह
फ्लैट हेड सिंड्रोम गर्दन की मांसपेशियों में जकड़न के कारण भी हो सकता है। जिससे बच्चों के लिए अपना सिर घुमाना मुश्किल हो जाता है। गर्दन की इस स्थिति को टॉर्टिकॉलिस (Torticollis) कहा जाता है । सिर घुमाने में समस्या होने की वजह से बच्चे लेटते समय अपना सिर उसी स्थिति में रखते हैं।
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इससे सिर चपटा हो सकता है। वहीं, जब सिर सपाट हो जाता है, तो टॉर्टिकॉलिस खराब हो सकता है। ऐसे शिशुओं को अपना सिर घुमाने में बहुत ऊर्जा लगती है। इसलिए जिन शिशुओं की गर्दन एक तरफ़ बहुत ज़्यादा चपटी होती है, वे उसी तरफ़ ज्यादा सोते हैं और ऐसे में उनकी गर्दन अकड जाती है।
फ्लैट हेड सिंड्रोम के लक्षण क्या हैं?
- बच्चे के सिर का पिछला भाग एक तरफ से चपटा हो सकता है।
- आमतौर पर बच्चे के सिर के उस हिस्से पर बाल कम होते हैं।
- जब बच्चे के सिर की ओर नीचे की ओर देखा जाए तो चपटा कान आगे की ओर निकला हुआ दिखाई दे सकता है।
- गंभीर मामलों में, माथा सपाट होने के विपरीत दिशा में उभर सकता है, और असमान दिख सकता है।
- अगर टॉर्टिकॉलिस इसका कारण है, तो गर्दन, जबड़ा और चेहरा भी असमान हो सकता है।
फ्लैट हेड सिंड्रोम का निदान कैसे किया जाता है?
डॉक्टर अक्सर बच्चे के सिर की जांच कर फ्लैट हेड सिंड्रोम का निदान कर सकते हैं। टॉर्टिकॉलिस की जांच करने के लिए डॉक्टर बच्चें के सिर और गर्दन की मूवमेंट का मुआयना करते हैं। इसके लिए आमतौर पर मेडिकल टेस्ट की ज़रूरत नहीं होती है।
फ्लैट हेड सिंड्रोम का इलाज (Flat Head Syndrome treatment)
शिशुओं की देखभाल करने वालों को हमेशा बच्चों को पीठ के बल सुलाना चाहिए ताकि अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम (SIDS) को रोकने में मदद मिल सके। भले ही इसमें फ्लैट हेड सिंड्रोम की संभावना ज्यादा हो सकती है। झूलों, कार की सीटों, उछाल वाली कुर्सियों और अन्य उपकरणों का ज्यादा उपयोग नहीं करना शिशु की नींद के लिए सुरक्षित होते हैं। इससे यह सुनिश्चित करने में भी मदद मिलती है कि बच्चे अपने सिर को स्वतंत्र रूप से हिला सकें।
अब हम यह जानते हैं कि फ्लैट हेड सिंड्रोम एक ही पोजिशन में सोने या लेटने की स्थिति के कारण होता है तो माता-पिता क्या कर सकते हैं? इसके लिए यह जरूरी है कि कुछ अंतराल पर बच्चे की सोने की स्थिति बदलते रहें। फ्लैट हेड सिंड्रोम से शिशुओं को बचाने के लिए इन सुझावों को आजमाया जा सकता है:
पेट को पेट के बल सुलाने का भी अभ्यास कराएं। ऐसा माता-पिता अपनी निगरानी में ही करें। जब शिशु जगा हुआ हो, तभी उसे पेट के बल सुलाने का अभ्यास करवाएं। ऐसा करने से सिर के पिछले हिस्से को सामान्य आकार देने में मदद मिलती है। इससे शिशुओं और बच्चों की गर्दन की मांसपेशियों को मजबूत बनाने और अपनी बाहों को ऊपर उठाने में मदद मिलती है। इससे रेंगने और बैठने के लिए आवश्यक मांसपेशियों को विकसित करने में मदद मिलती है।
पालने में अलग-अलग पोजीशन रखें। माता-पिता को शिशुओं के पालने में सुलाने के पोश्चर के बारे में भी विचार करना चाहिए। अधिकांश दाएं हाथ वाले माता-पिता अपने बाएं हाथ में बच्चे को गोद में लेकर चलते हैं और उन्हें सिर को बाईं ओर करके लिटाते हैं। अपने बच्चे को पालने में इस तरह रखें कि वह सक्रिय रूप से सिर को बाएं तरफ घुमा सके।
अपने बच्चे को एक ही पोजीशन में रखने के लिए वेज पिलो (flat head syndrome pillow) या अन्य डिवाइस का इस्तेमाल न करें। अपने बच्चे को पीठ के बल लेटने या सिर को समतल सतह (जैसे कार की सीट, झूले और उछाल वाली सीट) पर आराम देने के समय को सीमित करें।
Flat Head Syndrome Exercises : फिजियोथेरेपी भी है विकल्प
फ्लैट हेड सिंड्रोम वाले अधिकांश शिशुओं में कुछ हद तक टॉर्टिकॉलिस भी पाई जाती है। इसलिए घर पर स्ट्रेचिंग और फिजिकल थेरेपी देना आमतौर पर यह उपचार का हिस्सा होते हैं। एक फिजियोथेरेपिस्ट माता-पिता को बच्चे के साथ स्ट्रेचिंग से जुड़े व्यायाम सिखा सकता है। ज्यादातर मूव में गर्दन को झुकाव के विपरीत दिशा में खींचना होता है। समय के साथ, गर्दन की मांसपेशियाँ लंबी हो जाती है और गर्दन अपने आप सीधा हो जाता है। व्यायाम सरल हैं, लेकिन इन्हें सही तरीके से किया जाना चाहिए।
Flat Head Syndrome Helmet : हेलमेट चिकित्सा
डॉक्टर फ्लैट हेड सिंड्रोम के लिए हेलमेट की भी सलाह दे सकते हैं। हेलमेट को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि यह बच्चे के सिर के सपाट होने पर ढीला और गोल होने पर कसकर फिट हो। हेलमेट में, सिर उस जगह नहीं बढ़ सकता जहां यह पहले से ही गोल है। इसलिए यह वहाँ बढ़ता है जहाँ यह सपाट होता है।
हेलमेट समय के साथ सिर को अधिक तेज़ी से गोल बनाता है। हालांकि, औसतन, जिन शिशुओं को हेलमेट मिलता है और जिन शिशुओं को नहीं मिलता है, उनके परिणाम कुछ वर्षों के बाद समान होते हैं। इस विषय में डॉक्टर से बातचीत करनी चाहिए कि क्या हेलमेंट समस्या में बच्चे की मदद कर सकता है।
Flat Head Syndrome Treatment : यह भी जानें
समय और प्राकृतिक विकास के साथ फ्लैट हेड सिंड्रोम में सुधार होता है। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, वे सोने के दौरान खुद ही अपनी स्थिति को बदलना शुरू कर देते हैं। ऐसे में उनका सिर एक ही स्थिति में रहने से बचता है। जब बच्चे अपने आप बैठने योग्य हो जाते हैं, तो वक्त बीतने के साथ जैसे-जैसे खोपडी का विकास होता है, सिर का चपटापन बेहतर होने लगता है।
गंभीर मामलों में भी यह सुधार पाया गया है। यहां एक बात अच्छी है कि फ्लैट हेड सिंड्रोम बच्चे के मस्तिष्क के विकास को प्रभावित नहीं करता है लेकिन गर्दन में अकड़न होने से शुरुआती विकास धीमा हो सकता है।
टॉर्टिकॉलिस के लिए फिजिकल थेरेपी में बच्चे की प्रगति की जांच और किसी भी देरी का इलाज करने के लिए अतिरिक्त व्यायाम शामिल होना चाहिए। जन्म के बाद से ही अपने शिशुओं के सोने की स्थिति को लेकर जागरुक रहना चाहिए।