हैरानी होगी जानकर मौत को सूंघने का विज्ञान, Medical Research में खुलासा
medical research on death, mystery of death, death sign : जीवन में एक ही सत्य है और वह है मौत। यह कब आएगी किसी को पता नहीं होता। इंसान के लिए मौत आज भी एक पहेली बनी है। मौत के रहस्यों को उजागर करने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक शोध (Medical Research) और अध्ययन में जुटे हुए हैं।
हाल ही में वैज्ञानिकों के एक अध्ययन (Medical Research) में मौत के रहस्यों (mystery of death) से जुडी एक नई और हैरान कर देने वाली जानकारी सामने आई है। इस शोध से एक सवाल भी खडा हो गया है कि जिस तरह मानव शरीर स्वास्थ्य और तंदुरूस्ती का संकेत देता है, क्या वह मौत का भी संकेत (Sign of death) देता है? अगर ऐसा है, तो वे संकेत किस तरह के हो सकते हैं?
क्या है मौत और नाक के बीच का रहस्य
मौत (Death) से पहले नाक देता है हैरान करने वाले संकेत
हाल ही में जो शोध (medical research) किए गए, उसके वैज्ञानिक निष्कर्षों से यह पता चलता है कि नाक मृत्यु के संकेत को प्रकट करने में आश्चर्यजनक भूमिका निभा सकता है। गंध के माध्यम से मृत्यु को महसूस करने वाले व्यक्तियों की कहानियों और घ्राण परिवर्तनों (olfactory changes) को स्वास्थ्य से जोड़ने वाले अभूतपूर्व शोध ने एक नई जानकारी प्रकट की है कि कैसे हमारा शरीर हमारी समझ से कहीं अधिक जान सकता है?
इस शोध (Medical Research) से एक जिज्ञासा और पैदा हुई है कि क्या मृत्यु को समझने की कुंजी गंध जैसी सरल चीज में छिपी हो सकती है? जैसे-जैसे शोधकर्ता गंध की भावना और शरीर के आंतरिक संकेतों के बीच संबंधों को उजागर करते हैं, उनके सामने इससे संबंधित कई आश्चर्यजनक जानकारियां सामने आ रही हैं।
शोधकर्ता इस खोज (Medical Research) में लगे है कि उन्हें कोई ऐसा सूत्र मिले जिससे मृत्यु की भविष्यवाणी करना संभव हो जाए। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर नाक हमें ऐसा क्या संकेत देता है, जिससे हम मौत की निकटता को पहचान सकते हैं।
मौत को सूंघने का विज्ञान
मानव शरीर अपने अंतिम चरण में जटिल रासायनिक परिवर्तनों की एक श्रृंखला (Series) से गुजरता है। इनमें से एक है पुट्रेसिन का स्राव (Secretion of putrescine)। यह ऊतक अपघटन (Tissue decomposition) के दौरान उत्पन्न होने वाला एक यौगिक है।
यह पदार्थ एक विशिष्ट गंध को उत्सर्जित (emitted) करता है, जो अक्सर प्राण क्षय (loss of life) से जुड़ी होती है। दिलचस्प बात यह है कि शोध से पता चलता है कि मनुष्य अवचेतन रूप (Subconscious form) से इस गंध का पता लगा सकते हैं, जिससे जन्मजात जीवित तंत्र (innate survival mechanisms) सक्रिय हो जाता है।
शोधकर्ता डॉ. अर्नोद विस्मैन और डॉ. इलान श्रीरा के इस शोध में इस तरह की जानकारियां सामने आई है। इन्होंने एक शोध किया, जिसका विषय “मृत्यु की गंध: साक्ष्य कि पुट्रेसिन खतरे के प्रबंधन तंत्र को उजागर करता है,” (“The smell of death: Evidence that putrescine elicits threat management mechanisms,”) था।
इस शोध (Medical Research) में कुछ प्रतिभागियों को शामिल किया गया। में उन्होंने पाया कि पुट्रेसिन के थोड़े समय के संपर्क में आने से भी सतर्कता बढ़ जाती है और प्रतिभागियों में रक्षात्मक व्यवहार पैदा हो जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि पुट्रेसिन की गंध एक अचेतन खतरे (Subliminal threats) के संकेत के रूप में कार्य करती है।
शोधकर्ताओं को यहां एक और महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई कि घ्राण तंत्र (Olfactory system) की भूमिका केवल बाहरी गंधों का पता लगाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह आंतरिक स्वास्थ्य (Internal Health) को भी दर्शाता है। अध्ययनों ने गंध की कम होती हुई भावना को विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियों से जोड़ा है।
जिसमें पार्किंसंस और अल्जाइमर (Parkinson’s and Alzheimer’s) जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियां (neurodegenerative diseases) शामिल हैं। शिकागो विश्वविद्यालय के शोध में यह पाया गया कि खराब घ्राण कार्य (poor olfactory function) वाले वृद्धों में सामान्य गंध की भावना वाले लोगों की तुलना में पांच वर्षों के भीतर मृत्यु का जोखिम अधिक था।
इन निष्कर्षों यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारी सूंघने की क्षमता पर्यावरण जागरूकता और आंतरिक स्वास्थ्य निगरानी दोनों से जटिल रूप से जुड़ी हुई है। पुट्रेसिन का पता लगाना एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning System) के रूप में कार्य कर सकता है। जो हमें संभावित खतरों के प्रति सचेत करता है। जबकि घ्राण क्रिया में गिरावट अंतर्निहित स्वास्थ्य समस्याओं (underlying health problems) की ओर संकेत करता है।
छठी इंद्री : क्या दूसरों के मौत की गंध सूंघ सकता है इंसान
Medical research : मौत (Death) से पहले नाक देता है हैरान करने वाले संकेत
इतिहास पर नजर डालें तो हमें कई ऐसे लोगों के बारे में यह पता चलता है कि जो एक विशिष्ट गंध (Specific smell) के माध्यम से आसन्न मृत्यु (imminent death) को भांपने का दावा करते हैं। इस घटना को अक्सर “छठी इंद्रिय” के रूप में बताया जाता है। इससे यह पता चलता है कि मनुष्यों में मृत्यु से जुड़े रासायनिक संकेतों को पहचानने की जन्मजात क्षमता हो सकती है।
शोध से यह भी पता चला है कि मरने की प्रक्रिया के दौरान शरीर विशिष्ट यौगिक (Specialized compounds) छोड़ता है। इसमें पुट्रेसिन प्रमुख है जो ऊतक अपघटन (Tissue decomposition) का एक उपोत्पाद (by-product) है। इस गंध को मनुष्य सचेत रूप से नहीं पहचान सकता है।
अध्ययनों (Medical Research) से पता चला है कि पुट्रेसिन के अवचेतन संपर्क (Subconscious contact)से भी सतर्कता और रक्षात्मक व्यवहार बढ़ सकता है। केंट विश्वविद्यालय के डॉ. अर्नोद विस्मैन के मुताबिक, “सुगंध कई चीजों को बता सकती है जैसे कि खतरा, क्या कुछ खाने योग्य है, क्या कोई साथी उपयुक्त है, और यहां तक कि दूसरे कैसा महसूस करते हैं।”
हालांकि “मृत्यु गंध” का विचार गूढ़ (Esoteric) लग सकता है लेकिन यह हमारी संवेदी धारणाओं (Sensory perceptions) और जीवित रहने की प्रवृत्ति के बीच गहरे संबंध को भी स्पष्ट करता है। जैसे-जैसे शोध (Medical Research) घ्राण संकेत की बारीकियों का पता लगाने की दिशा में आगे बढ रहा है, शरीर के संचार और हमारे आस-पास की दुनिया के प्रति प्रतिक्रिया के सूक्ष्म तरीकों के बारे में गहरी जानकारी प्राप्त होने का सिलसिला जारी है।
गंध की क्षमता में कमी स्वास्थ्य में गिरावट का संकेत
शोध (Medical Research) ने घ्राण दुर्बलता (olfactory impairment) और न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों (neurodegenerative diseases) के बीच एक मजबूत संबंध को स्थापित किया है। उदाहरण के लिए, गंध की कम होती हुई अनुभूति अक्सर अल्जाइमर और पार्किंसंस रोगों के शुरुआती लक्षणों में से एक होती है।
शिकागो विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पाया गया कि गंध की भावना में तेजी से गिरावट संज्ञानात्मक गिरावट (cognitive decline) के संकेत हो सकते हैं। अल्जाइमर रोग और मनोभ्रंश (Dementia)से जुड़े मस्तिष्क क्षेत्रों में संरचनात्मक परिवर्तनों (Structural Changes) का भी इसके जरिए पता लगाया जा सकता है।
न्यूरोडीजेनेरेटिव विकारों के अलावा, घ्राण संबंधी विकार (Olfactory disorders) को मृत्यु के बढे हुए जोखिम से जोडकर देखा जा रहा है। शोध में 21,000 से अधिक प्रतिभागियों को शामिल किया गया। इनके परिणामों की एक व्यवस्थित समीक्षा और मेटा-विश्लेषण से पता चला है कि बिगड़े हुए घ्राण कार्य वाले व्यक्तियों में सामान्य लोगों की तुलना में मृत्यु का 52% अधिक जोखिम था।
आयु, लिंग और मौजूदा स्वास्थ्य स्थितियों जैसे कारकों (Factors) को समायोजित (Well Adjust) करने के बाद भी यह संबंध महत्वपूर्ण बना रहा। जिससे पता चलता है कि स्मेल की क्षमता में कमी मृत्यु के जोखिम की ओर ईशारा करता है।
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