नई दिल्ली : पिता की मौत से आहत एक परिवार ने अंगदान (Orgain Donation) कर मानवता की बडी मिसाल पेश की है। परिवार के इस कदम से जहां कई ऐसे लोगों की जिंदगी बच गई जो किडनी और लिवर की गंभीर बीमारी से पीडित थे।
दरअसल, 45 वर्षीय ऑटोरिक्शा चालक कारू सिंह गत 30 जून को बिहार के अपने गांव से अपनी बेटी की शादी का रिश्ता तय करने दिल्ली आए थे। लंबी यात्रा के बाद थके हुए कारू सिंह अपने रिश्तेदार के यहां ठहरे हुए थे। रात को छत पर सोने के लिए चले गए। रात में वह किसी काम से उठे लेकिन उन्हें दिशाभ्रम हो गया और अचानक वह छत से नीचे गिर गए। परिवार ने उन्हें 1 जुलाई को एम्स ट्रॉमा सेंटर में भर्ती करवाया। डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बाद भी कारू सिंह को बचाया नहीं जा सका। शाम 4:13 बजे डॉक्टरों ने उन्हें ब्रेन डेड करार दिया।
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इस बीच एम्स के ऑर्बों विभाग के डॉक्टरों और ट्रांसप्लांट को-ऑर्डिनेटरों द्वारा परिजनों को अंगदान के विकल्प के बारे में सूचित किया गया। दुख की इस घडी में भी परिजनों ने मानवीय संवेदना का परिचय दिया और अंगदान करने की सहमति दे दी। परिजनों ने कहा कि हमारे पिता के साथ जो हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन उनके दान किए हुए अंग से अगर किसी के दुख को दूर किया जा सकता है तो यह उनके मृत पिता के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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परिजनों की सहमति के बाद बीते 2 जुलाई को मृतक के शरीर से अंगों को हासिल किया गया। दान किए गए अंगों में से हृदय 40 वर्षीय महिला में प्रत्यारोपित किया गया। 62 वर्षीय पुरूष में लिवर प्रत्यारोपित किया गया। जबकि, एम्स में ही भर्ती 56 वर्षीय मरीज में किडनी प्रत्यारोपित कर समय रहते उसकी जिंदगी बचाने में कामयाबी मिली। वहीं दूसरी किडनी आरएमएल अस्पताल में भर्ती 37 वर्षीय महिला को दिया गया।
अंगदान की प्रक्रिया नोटो की देखरेख में पूरी की गई। एम्स की नेशनल आई बैंक में मृतक के शरीर से प्राप्त कॉर्निया को सुरक्षित तरीके से संरक्षित किया गया है। जरूरत के मुताबिक किसी मरीज को कॉर्निया प्रत्यारोपित कर उसके अंधेरे जीवन को रोशन करना संभव हो पाएगा। इस बीच प्रत्यारोण टीम का भी प्रयास सराहनीय रहा और उन्होंने कुशलता से अंगदान की सभी प्रक्रिया को अंजाम दिया।
एम्स दिल्ली में ऑर्गन ट्रांसप्लांट एंड रिट्रीवल ऑर्गनाइजेशन (ऑर्बो) की प्रमुख प्रो. आरती विज ने कहा कि अंगों की मांग और उपलब्धता में भारी अंतर को इस तरह के निर्णय से कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पीडित परिवार ने अपने सबसे कठिन क्षणों में भी ऐसा नेक फैसला लिया, जो उनके संवेदनशील होने का प्रमाण है। ऐसे वक्त में इस तरह के फैसले लेना आसान नहीं होता है। परिजनों का निर्णय अत्यंत सराहनीय है। उनके इस कदम से औरों को भी प्रेरणा लेने की जरूरत है।
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