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🖊️ Edited by: Kavya Singh
मेनोपॉज के बाद कमजोर हड्डियो पर भारतीय (AIIMS) वैज्ञानिको की नयी खोज
नई दिल्ली। Postmenopausal osteoporosis delhi AIIMS Study : भारत से आयी नयी वैज्ञानिक स्टडी (AIIMS Study) में यह संकेत मिला है कि रोजमर्रा की दही और कई खुराक सप्लीमेंट में पायी जाने वाली एक सामान्य लाभदायक जीवाणु, लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस (Lactobacillus acidophilus), मेनोपॉज के बाद होने वाली हड्डियो की कमजोरी और फ्रैक्चर को धीमा करने में मददगार हो सकती है।
यह शोध (Postmenopausal osteoporosis AIIMS research) प्रतिष्ठित जर्नल, जर्नल ऑफ सेल्युलर फिजियोलॉजी (Journal of Cellular Physiology) में प्रकाशित हुआ है। इस रिसर्च को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स (AIIMS) की टीम ने किया है।
वैज्ञानिको ने पाया कि मेनोपॉज के बाद हड्डियो को नुकसान का मामला सिर्फ हार्मोन की कमी से नही बल्कि आंत के सूक्ष्म जीवो और शरीर के रक्षा तंत्र के बारीक संतुलन से भी जुडा है।
स्टडी (Postmenopausal osteoporosis AIIMS Study) में लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस ने आंत में सूजन को घटाने वाली कोशिकाओ को बढाकर और नुकसान पहुंचाने वाली कोशिकाओ को कम करके हड्डियो की सुरक्षा की नयी सम्भावना दिखायी।
Postmenopausal osteoporosis : मेनोपॉज में हार्मोन घटने से हड्डियो पर क्या असर पडता है ?
मेनोपॉज के बाद महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन (estrogen) नामक प्रमुख हार्मोन की मात्रा अचानक कम हो जाती है, जबकि यही हार्मोन हड्डियो की मजबूती बनाये रखने में अहम भूमिका निभाता है।
एस्ट्रोजन घटने पर हड्डी बनाने और हड्डी घिसने की प्राकृतिक प्रक्रिया में असंतुलन हो जाता है, नयी हड्डी धीरे बनती है लेकिन पुरानी तेजी से नष्ट होने लगती है।
कुछ वर्षो में यही स्थिति हड्डियो को पतला, कमजोर और खोखला बना देती है, जिसे डॉक्टर पोस्टमेनोपॉजल ऑस्टियोपोरोसिस (postmenopausal osteoporosis) कहते है।
इस अवस्था में रीढ, कूल्हे और कलाई की हड्डिया खास तौर पर ज्यादा प्रभावित हो सकती है और मामूली सी ठेस या गिरने पर भी फ्रैक्चर का खतरा कई गुना बढ जाता है।
अब नयी रिसर्च (Postmenopausal osteoporosis Research) यह साफ कर रही है कि यह सिर्फ हार्मोन से संबंधित ही नहीं है बल्कि शरीर के रक्षा तंत्र और आंत के सूक्ष्म जीवो के बिगडे संतुलन से भी संबंध रखती है।
आंत, रोग प्रतिरोधक तंत्र और हड्डियो का आपसी रिश्ता
एम्स की इस स्टडी (Postmenopausal osteoporosis AIIMS study) में नियंत्रक टी कोशिकाओ (regulatory T cells या Tregs) पर रखा गया, जो शरीर में जरूरत से ज्यादा बढने वाली सूजन को थामने का काम करती है और ऊतको को नुकसान से बचाती है।
इनमे से बडी संख्या आंत में ही बनती है और वहा मौजूद अच्छे बैक्टीरिया इनके विकास और कामकाज दोनों पर असर डालते है।
शोध (Postmenopausal osteoporosis research) में मेनोपॉज जैसी स्थिति बनने पर यह देखा गया कि सुरक्षात्मक नियंत्रक टी कोशिकाओ की संख्या कम हो रही थी, जबकि इसके उलट सूजन बढाने वाली टी एच–17 कोशिकाये (Th17 cells) बढ रही थी।
टी एच–17 कोशिकाये ऐसे रसायन छोडती है जो हड्डी घिसने वाली कोशिकाओ, यानी ओस्टियोक्लास्ट (osteoclast) को और ज्यादा सक्रिय कर देती है, नतीजा यह होता है कि हड्डियो की घनता तेजी से घटने लगती है।
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प्रोबायोटिक से इम्यून संतुलन में सुधार और ब्यूटिरेट की भूमिका
जब इस मेनोपॉज जैसी स्थिति में लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस प्रोबायोटिक (Lactobacillus acidophilus probiotic) दिया गया, तो नियंत्रक टी कोशिकाओ और टी एच–17 कोशिकाओ के बीच का यह बिगडा संतुलन बदलने लगा।
स्टडी (Postmenopausal osteoporosis study) के मुताबिक प्रोबायोटिक देने के बाद सुरक्षात्मक नियंत्रक टी कोशिकाये बढी और सूजन बढाने वाली टी एच–17 कोशिकाये घटी, जिससे ओस्टियोक्लास्ट की जरूरत से ज्यादा सक्रियता पर रोक लगी और हड्डियो के नुकसान की रफ्तार धीमी पड गई।
इस प्रभाव के पीछे आंत में बनने वाले एक खास वसायुक्त अम्ल, ब्यूटिरेट (butyrate), की महत्वपूर्ण भूमिका सामने आयी है। यह यौगिक छोटे शृंखला वाले वसायुक्त अम्ल (short chain fatty acids) समूह में आता है और अच्छे बैक्टीरिया द्वारा बनता है।
स्टडी (Postmenopausal osteoporosis study) में पाया गया कि लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस ब्यूटिरेट को बढाने में मदद करता है और यही ब्यूटिरेट नियंत्रक टी कोशिकाओ को स्थिर बनाकर उन्हें सूजन बढाने वाली दिशा में बदलने से रोकता है, जिस कारण हड्डियो को नुकसान पहुंचाने वाली प्रक्रिया पर ब्रेक लगता है।
एम्स के इस रिसर्च की विशेषता
एम्स के डॉ रूपेश श्रीवास्तव (Dr. Rupesh Srivastava, AIIMS) की टीम कई वर्षो से प्रोबायोटिक और हड्डियो के स्वास्थ्य पर काम कर रही है और इस नयी स्टडी में उन्होंने आंत, रोग प्रतिरोधक तंत्र और पोस्टमेनोपॉजल ऑस्टियोपोरोसिस के बीच के रिश्ते को बहुत स्पष्ट रूप से समझा है।
उनकी टीम ने यह दिखाया कि लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस केवल एक आम प्रोबायोटिक नही, बल्कि यह सूजन से जुडे रसायनो, ओस्टियोक्लास्ट बनाने वाली प्रक्रियाओ और टी कोशिकाओ के संतुलन, तीनो पर एक साथ प्रभाव डाल सकता है।
शोधकर्ताओ का कहना है कि यह काम उन शुरुआती अध्ययनो में शामिल है, जिन्होंने मेनोपॉज के बाद हड्डियो की कमजोरी को सीधे आंत में रहने वाले बैक्टीरिया, नियंत्रक टी कोशिकाओ और टी एच–17 कोशिकाओ के स्तर पर समझाने की कोशिश की है।
टीम ने यह भी स्पष्ट किया कि अभी इस प्रोबायोटिक को किसी दवा के स्थान पर नही माना जा रहा बल्कि इसे भविष्य में हड्डियो के इलाज के साथ चलने वाली सहायक रणनीति के रूप में देखने की बात कही गयी है।
Gut–bone कडी को पहली बार इस तरह समझा गया
अब तक हड्डियो की बीमारी की चर्चा में जोर मुख्य रूप से हार्मोन बदलने वाली चिकित्सा, कैल्शियम, विटामिन डी और व्यायाम पर रहा है।
नयी स्टडी (Postmenopausal osteoporosis Study) इस तस्वीर में यह जोडती है कि आंत के सूक्ष्म जीवो की संरचना और वहां बनने वाले ब्यूटिरेट जैसे यौगिक भी पोस्टमेनोपॉजल ऑस्टियोपोरोसिस के खतरे और उसकी प्रगति को बदल सकते है।
पिछले वर्षो में पशु आधारित अध्ययनो में यह देखा गया था कि लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस देने पर मेनोपॉज जैसी स्थिति वाले मॉडल में हड्डियो की घनता और उनकी सूक्ष्म संरचना पहले की तुलना में बेहतर बनी रहती है।
एम्स की नयी स्टडी (Postmenopausal osteoporosis related AIIMS Study) इन नतीजो को रोग प्रतिरोधक तंत्र के स्तर पर जोडती है और यह दिखाती है कि नियंत्रक टी कोशिकाओ और टी एच–17 कोशिकाओ के संतुलन को निशाना बनाकर भी हड्डियो को टूटने से बचाया जा सकता है।
महिलाओ के लिए इसका व्यावहारिक मतलब क्या है
शोधकर्ताओ ने जोर देकर कहा है कि अभी इस प्रोबायोटिक को आम इलाज की तरह अपने आप शुरू कर देना ठीक नही होगा क्योंकि बडे स्तर के मानव अध्ययन (clinical trials) अभी और जरूरी है।
कुछ क्लिनिकल स्टडीज में पोस्टमेनोपॉज महिलाओ को ऐसे प्रोबायोटिक देने पर हड्डियो की घनता में बडा बदलाव तो नही दिखा लेकिन हड्डी के टूटने और बनने से जुडे सूचको (bone turnover markers) को स्थिर रखने की दिशा में सकारात्मक संकेत जरूर मिले है।
फिलहाल हड्डियो की मजबूती के लिए मुख्य आधार वही है, पर्याप्त कैल्शियम और विटामिन डी लेना, वजन सहन करने वाले व्यायाम (weight‑bearing exercise) करना, धूप में समय बिताना, धूम्रपान और अधिक शराब से बचना और जरूरत पडने पर डॉक्टर द्वारा दी गयी ऑस्टियोपोरोसिस की दवाओ का नियमित सेवन करना।
आने वाले समय में उम्मीद है कि लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस जैसे चुने हुए प्रोबायोटिक, इन परम्परागत उपायो के साथ मिलकर अतिरिक्त सुरक्षा की परत दे सकेंगे।
स्वस्थ आंत, मजबूत हड्डिया और उम्रदराज महिलाओ की सेहत
हाल के समीक्षा लेख (systematic review) यह बताते है कि आंत के सूक्ष्म जीवो और हड्डियो के स्वास्थ्य के बीच सीधा रिश्ता है और लैक्टोबैसिलस (Lactobacillus) समूह के कई जीवाणुओ ने पशु अध्ययनो में हड्डियो की सेहत पर लाभकारी असर दिखाया है।
दही और अन्य किण्वित दुग्ध उत्पाद (fermented dairy products) जैसे खाद्य पदार्थ ऐसे अच्छे जीवाणु बढाने में मदद करते है और ये सूक्ष्म जीव छोटे शृंखला वाले वसायुक्त अम्ल बनाकर कैल्शियम सोखने, हड्डियो के नवीनीकरण और हल्की सूजन को नियंत्रित करने में भूमिका निभा सकते है।
एम्स की नयी स्टडी (Postmenopausal osteoporosis AIIMS study) इसी व्यापक बुनियाद में नयी ईंट की तरह जुडती है और यह संदेश देती है कि खासकर मेनोपॉज के बाद की उम्र में, आंत की सेहत को नजरअंदाज करना हड्डियो की सेहत को नजरअंदाज करने जैसा है।
वैज्ञानिको के अनुसार जैसे जैसे गुड बैक्टीरिया, प्रोबायोटिक और आंत–हड्डी कडी पर रिसर्च बढेगी, वैसे वैसे महिलाओ की स्वस्थ उम्रदराजी (healthy ageing) के लिये gut health एक महत्वपूर्ण आधार स्तम्भ बन सकता है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर एम्स (AIIMS) की यह भारतीय स्टडी (Indian Study) यह दिखाती है कि पोस्टमेनोपॉजल ऑस्टियोपोरोसिस (Postmenopausal osteoporosis) केवल एस्ट्रोजन की कमी की कहानी नही, बल्कि आंत के अच्छे जीवाणु, रोग प्रतिरोधक कोशिकाओ और सूजन के बीच जटिल तालमेल की भी कहानी है।
लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस जैसी प्रोबायोटिक ने ब्यूटिरेट और नियंत्रक टी कोशिकाओ के जरिये हड्डियो के नुकसार और क्षति कम करने की मजबूत सम्भावना तो दिखायी है लेकिन इसे आम इलाज में शामिल करने से पहले और बडे मानव अध्ययन अनिवार्य है।
जिज्ञासा
Q. पोस्टमेनोपॉजल ऑस्टियोपोरोसिस (postmenopausal osteoporosis) क्या है?
Q. लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस (Lactobacillus acidophilus) हड्डियो की कैसे मदद कर सकता है?
Q. क्या केवल दही खाकर पोस्टमेनोपॉजल ऑस्टियोपोरोसिस से बचा जा सकता है?
Q. अभी पोस्टमेनोपॉजल ऑस्टियोपोरोसिस के लिये मान्य इलाज क्या है?
Q. क्या हर महिला को मेनोपॉज के बाद प्रोबायोटिक सप्लीमेंट शुरू कर देना चाहिये?
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