Tuesday, March 18, 2025
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Surgery in Rare Disease : 9 साल के बाद पैरों पर खड़ी हुई बच्ची 

बच्ची जन्मजात विकार (congenital disorder) से पीडित थी। जिसके कारण उसे चलने में समस्या थी।

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दुर्लभ बीमारी (Rare disease) Pseudoarthrosis के कारण चल नहीं सकती थी बच्ची 

Surgery in Rare Disease, Girl stands on her feet after 9 years, Delhi Hospital Surgery in Rare Disease : दिल्ली के अस्पताल (Delhi Hospitals) में दुर्लभ बीमारी (Rare disease) से पीडित एक बच्ची को सर्जरी (Surgery in Rare Disease) के बाद उबारने में सफलता हासिल की है।
बच्ची जन्मजात विकार (congenital disorder) से पीडित थी। जिसके कारण उसे चलने में समस्या थी। 9 साल विकार के साथ व्यतीत करने के बाद आखिर डॉक्टरों की कृपा से वह अपने पैरों पर खडी हो सकी है।

Pseudoarthrosis : स्यूडोआर्थ्रोसिस से पीडित थी बच्ची 

बच्ची जन्म से ही स्यूडोआर्थोसिस (Pseudoarthrosis) से पीडित थी। पैरों की हड्डियां इस कदर झुकी हुई थी, जिसके कारण उसके लिए सामान्य रूप से आवागमन करना संभव नहीं था। महज छह साल की उम्र में ही एक सर्जरी से गुरजने के बाद भी हालत में सुधार नहीं हुआ।
परिजनों ने अब यह उम्मीद छोड दी कि बच्ची अब कभी अपने पैरों पर चल पाएगी लेकिन फिर भी प्रयास जारी रखा। आर्थिक रूप से लाचार परिवार ने बच्ची के उपचार के लिए ANVKA फाउंडेशन से संपर्क किया। फिर उपचार के लिए बच्ची को द्वारका के आकाश हेल्थकेयर (Aakash Healthcare in Dwarka) लेकर पहुंचे।

जांच में जटिलताओं का हुआ खुलासा 

Surgery in Rare Disease : 9 साल के बाद पैरों पर खड़ी हुई बच्ची 
9 साल के बाद पैरों पर खड़ी हुई बच्ची
9 साल की नसरीन (9 year old Nasreen) की जब डॉक्टरों ने जांच की तो पाया कि उसके मामले में कई तरह की जटिलताएं (Complications) हैं। पता चला कि उसे न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप 2 (NF2) के साथ टिबिया (Tibia) और जन्मजात स्यूडोआर्थ्रोसिस (Pseudoarthrosis) था। यह समस्या हड्डियों की मजबूती और उपचार को प्रभावित करने वाली एक दुर्लभ स्वास्थ्य स्थिति (Rare health condition) है।

Surgery in Rare Disease : डॉक्टरों के सामने थी सबसे बडी चुनौती 

बच्ची की स्थिति को सामान्य करने के लिए डॉक्टरों ने सर्जरी का विकल्प चुना लेकिन उनके सामने बहुत बडी चुनौती भी थी। जिस कंडिशन में नसरीन थी उसमें हड्डियां ठीक से जुड़ने में मुश्किल होती है। इसके कारण प्रभावित अंग कमजोर हो जाते हैं। नतीजतन, हीलिंग में बाधा आती है।
“मुख्य चुनौती हड्डियों के सिरों का आपस में न जुड़ना था, जिसका मतलब है कि हड्डियां उम्मीद के मुताबिक ठीक नहीं हो पाईं। इसके अलावा, उसकी बोन मेरो (bone marrow) बहुत पतली थी और पूरी हड्डी की गुणवत्ता (Bone quality) खराब थी, जिससे उपचार मुश्किल हो रहा था। भले ही हम उसका इलाज करने में कामयाब हो गए, लेकिन फ्रैक्चर का जोखिम (Fracture Risk) बहुत अधिक था।”
– डॉ. विक्रम खन्ना, सीनियर कंसल्टेंट, ऑर्थोपेडिक्स और जॉइंट रिप्लेसमेंट, आकाश हेल्थकेयर

 डॉक्टरों ने अपनाया मल्टी स्टेप दृष्टिकोण

नसरीन के मामले में मेडिकल टीम ने पहले सभी विकल्पों पर बारीकी से विचार किया। इसके साथ ही उन्होंने पारंपरिक सर्जरी (Traditional Surgery) जैसे, बोन प्लेटिंग (Bone Plating), नेलिंग और स्टैंडअलोन बोन ग्राफ्टिंग (Nailing and standalone bone grafting) पर भी विचार किया।
आखिर में डॉक्टरों ने ठीक होने की संभावनाओं को अधिकतम करने के लिए एक मल्टी स्टेप दृष्टिकोण (Multi-step approach) को अपनाने का निर्णय लिया।

Surgery in Rare Disease : ऐसे मिली मेडिकल टीम को सफलता 

जिस सर्जिकल प्रक्रिया (Surgical Procedure) को लेकर मेडिकल टीम एकमत हुई, उसमें लंबी सफलता सुनिश्चित करने के लिए मरीज स्थिति के कई पहलुओं पर चर्चा की गई। डॉक्टरों ने सबसे पहले उसके दोनों पैरों से असामान्य टिश्यू वृद्धि (abnormal tissue growth) को हटाया।
इसे मेडिकल भाषा में हमर्टोमा (Hamartoma) कहते हैं। इसके बाद, उपचार को बढ़ावा देने और आवश्यक संरचनात्मक सहायता (Structural Support) प्रदान करने के लिए एक हड्डी का ग्राफ्ट (Bone graft) भी किया गया।
टिबिया को स्थिर करने के लिए एक टाइटेनियम इलास्टिक नेलिंग सिस्टम (TENS) डाली गई। वहीं, फिबुला (Fibula) के K-वायरिंग द्वारा अतिरिक्त सहायता प्रदान की गई। अंत में, हड्डियों को जगह पर रखने और उचित उपचार को प्रोत्साहित करने के लिए एक इलिजारोव बाहरी फिक्सेटर (Ilizarov External Fixator) लगाया गया।
“इलिजारोव फ्रेम (Ilizarov frame) को छह महीने तक तब तक रखा गया जब तक कि एक्स-रे में यह पुष्टि नहीं हो गई कि हड्डी पूरी तरह जुड़ गई है। इस दौरान, हमने नसरीन को वॉकर की मदद से चलने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे उसकी ठीक हो रही हड्डियों को मजबूत करने में मदद मिली।”
– डॉ. आशीष चौधरी, निदेशक और ऑर्थोपेडिक्स और जॉइंट रिप्लेसमेंट विभाग प्रमुख, आकश हेल्केयर  

जल्द ही बच्ची होगी पूरी तरह सक्रिय

हालांकि, सर्जरी सफल रही लेकिन बच्ची के सामान्य होने की प्रक्रिया अब भी जारी है। डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक, जब इस मामले में वह उम्मीद के मुताबिक सामान्य नहीं हो जाती है, तबतक TENS नेल्स उसके टिबिया में रहेंगी। इससे रिफ्रैक्चर (Refracture) की संभावनाओं को कम करने में मदद मिलेगी।
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बाहरी फिक्सेटर (External Fixator) को हटाने के बाद भी उसे अपनी हड्डियों की सुरक्षा (Protection of bones) के लिए अगले पांच से छह वर्षों तक प्लास्टर कास्ट या ब्रेस  (plaster cast or brace) पहनना जारी रखने का निर्देश दिया गया है।
बच्ची की हड्डियों के स्वास्थ्य की निगरानी (Monitoring bone health) के लिए हर छह महीने में नियमित एक्स-रे की भी आवश्यकता होगी। डॉक्टर उम्मीद कर रहे हैं कि निरंतर उपचार, पुनर्वास और नियमित जांच (Treatment, rehabilitation and regular check-ups)  के साथ वह सक्रिय जीवन जीने में सक्षम हो जाएगी।

नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

अस्वीकरण: caasindia.in में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को caasindia.in के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। caasindia.in लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी/विषय के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

 

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