Suicide Prevention Day : भारत में तेजी से बढ रही है आत्महत्या की प्रवृत्ति
नई दिल्ली। आत्महत्या की रोकथाम (Suicide Prevention) पूरे विश्च के लिए बडी चुनौती बनकर उभर रही है। विश्वभर में आत्महत्या के आंकडे एक सामान्य इंसान के शरीर में सिहरन पैदा कर देने के लिए काफी है। इन आंकडों को देखकर कोई भी आम इंसान यह सोचने को मजबूर हो जाएगा कि आखिर ऐसी क्या वजह है? जो इतने बडे पैमाने पर लोगों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर रही है।
हालांकि, बढती हुई आत्महत्या की प्रवृत्ति के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं। यह समस्या परिवार, समाज और किसी देश के लिए बडी समस्या बन रही है। जिसका समाधान (Suicide Prevention) शरीर में सिहरन पैदा कर देंगे आत्महत्या के आंकडे )सामाजिक स्तर पर ही संभव है। इससे पहले कि आत्महत्या की यह समस्या अति भयावह रूप ले ले, इसके प्रति सामाजिक स्तर पर संवेदनशील होने की जरूरत है।
जागरूकता के 20 साल, नहीं बदले हालात
मनोचिकित्सक और आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ आर. पी. पाराशर ने कहा कि विश्व में आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं और प्रत्येक 40 सेकंड में दुनिया में कोई न कोई व्यक्ति मौत को गले लगा लेता है। आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति के मद्देनजर सन् 2003 में स्यूसाइड प्रीवेंशन डे (Suicide Prevention Day) की शुरुआत कर दी गई थी लेकिन 20 साल बीतने के बावजूद भी आत्महत्या के मामले कम होने के बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं। पिछले वर्ष विश्व में आठ लाख से अधिक लोगों ने आत्महत्या की जिनमें से एक लाख चौसठ हजार से अधिक व्यक्ति भारत से थे।
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युवाओं में बढ रही है आत्महत्या की प्रवृत्ति
डॉ पाराशर ने कहा कि जीवन का अंत करने से किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता बल्कि आत्महत्या से प्रभावित पूरा परिवार विभिन्न आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक समस्याओं में फंस जाता है। उन्होंने कहा कि युवाओं में आत्म्हत्या की बढ़ती प्रवृत्ति दुर्भाग्यपूर्ण है, जिससे देश का मानव संसाधन विकास बुरी तरह प्रभावित होता है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2021 में डेली वेजर और निजी काम धंधों में लगे 62215 व्यक्तियों ने आत्महत्या की जो कुल आत्महत्याओं की घटना का 38 प्रतिशत है।
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महिलाओं की तुलना में अधिक आत्महत्या कर रहे हैं पुरुष
ब्यूरो द्वारा एकत्रित आंकड़ों के अनुसार आत्महत्या करने के पीछे पारिवारिक समस्याएं, बीमारी, वैवाहिक मतभेद और प्यार में असफलता आदि मुख्य कारण रहे हैं। इस दौरान महिलाओं की तुलना में दोगुने से भी अधिक पुरुषों ने आत्महत्या की। आत्महत्या करने से पूर्व व्यक्ति में हताशा, निराशा, चिड़चिड़ापन, नकारात्मकता, जीवन के प्रति उत्साह का अभाव, सामाजिक गतिविधियों के प्रति विरक्ति, मनोबल में कमी, भूख और शरीर की सफाई में लगातार कमी, आत्महत्या करने के बारे में चर्चा करना आदि लक्षण देखे जा सकते हैं।
तनाव, चिंता, उदासी और गुस्सा आत्महत्या की प्रमुख वजह

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ताजा रिपोर्ट के अनुसार लोगों में तनाव, चिंता, उदासी और गुस्सा इस समय पूरे विश्व में अब तक के उच्चतम स्तर पर है। जीवन और भविष्य के प्रति अनिश्चितता, असमानता, असुरक्षा, विश्वास की कमी, विफलता और सामाजिक ध्रुवीकरण के चलते व्यक्ति को जीवन अर्थहीन लगने लगता है, जो आत्महत्या की ओर ले जाता है।
डॉ पाराशर ने समझाया कि परिवार के सदस्य, मित्र और कार्यस्थल के साथी यदि इन लक्षणों को समझ कर तथा प्रभावित व्यक्ति से बातचीत कर उनका मनोबल बढ़ाएं तो आत्महत्याएं काफी हद तक रोकी (Suicide Prevention) जा सकती हैं। इसके लिए आवश्यक है कि हम सभी अपने सामाजिक दायित्वों को समझें तथा अपने आसपास के वातावरण और व्यक्तियों के प्रति सजग व संवेदनशील बनें। यदि किसी व्यक्ति के व्यवहार में नकारात्मक परिवर्तन दिखे तो तत्काल हमें उससे बातचीत कर उसे ढांढस ब़ंधाना चाहिए ताकि उसके मन से आत्महत्या के विचार निकल सकें।
रोहणी डायबिटिक सेंटर में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित
आत्महत्या रोकथाम (Suicide Prevention Day) शरीर में सिहरन पैदा कर देंगे आत्महत्या के आंकडे दिवस” की पूर्व संध्या पर रोहिणी डायबीटिक सेंटर में एक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। “सजगता व संवेदनशीलता से ही रुकेंगी आत्महत्याएं” विषय पर आयोजित इस कार्यक्रम में सेंटर के कर्मचारियों, मरीजों, स्थानीय नागरिकों और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की 98 वीं बटालियन के अधिकारियो़ और जवानों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम का उद्घाटन मनोचिकित्सक और आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ आर. पी. पाराशर ने किया।
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