सोमवार, जुलाई 7, 2025
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BiTS antibody therapy : टाइप-1 डायबिटीज और स्क्लेरोसिस के उपचार में नई क्रांति

BiTS एंटीबॉडी को टाइप-1 डायबिटीज मॉडल वाले चूहों में परीक्षण किया गया, जहाँ यह insulitis (अग्न्याशय पर हमला) को रोकने में सफल रही।

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Edited By: Ankur Shukla

टारगेटेड इम्यूनोथेरेपी की दिशा में ऐतिहासिक सफलता

BiTS antibody therapy : न्यूयॉर्क के NYU Langone Health और Chinese Academy of Sciences के शोधकर्ताओं ने चूहों पर एक ऐसा प्रयोग किया है, जो टाइप-1 डायबिटीज (Type-1 diabetes), हेपेटाइटिस (Hepatitis) और मल्टीपल स्क्लेरोसिस (multiple sclerosis) जैसी ऑटोइम्यून बीमारियों (Autoimmune diseases) के इलाज में क्रांति ला सकता है।
इस शोध में BiTS (LAG-3/TCR Bispecific T cell Silencer) नामक एक इंजीनियर्ड एंटीबॉडी (Engineered antibodies) बनाई गई, जो सिर्फ उन T-cells को निष्क्रिय करती है जो शरीर के ऊतकों पर हमला करते हैं, जबकि बाकी प्रतिरक्षा प्रणाली को अछूता छोड़ देती है।

BiTS antibody therapy : ऑटोइम्यून बीमारियों में T-cells क्यों बनते हैं खतरनाक?

T-cells शरीर की रक्षा प्रणाली का अहम हिस्सा होते हैं, लेकिन ऑटोइम्यून बीमारियों में यही कोशिकाएं भ्रमित होकर शरीर के अंगों पर ही हमला करने लगती हैं। (उदाहरण के लिए, टाइप-1 डायबिटीज में अग्न्याशय, हेपेटाइटिस में लिवर और मल्टीपल स्क्लेरोसिस में मस्तिष्क-रीढ़ की कोशिकाएं।) अब तक की इम्यूनोथेरेपीज इन T-cells को पूरी तरह दबा देती थीं, जिससे शरीर पर संक्रमण और कैंसर का खतरा बढ़ता था।

BiTS एंटीबॉडी कैसे करती है चयनित T-cells को निष्क्रिय?

BiTS दो मुख्य प्रोटीनों, T-cell Receptor (TCR) और LAG-3 को एक साथ बांध देती है। यह संयोजन T-cells को निष्क्रिय करने के लिए एक सुरक्षित दूरी और जैविक संकेत पैदा करता है, जिससे सिर्फ बीमारी से जुड़े T-cells ही प्रभावित होते हैं, न कि पूरी इम्यून सिस्टम।
LAG-3, जो एक प्रकार का “इम्यून चेकपॉइंट” है, पहले भी कैंसर और ऑटोइम्यून दोनों में प्रयुक्त हुआ है। लेकिन यह केवल तब प्रभावी होता है जब यह TCR के बेहद करीब हो। BiTS एंटीबॉडी इसी ‘निकटता’ को कृत्रिम रूप से बनाती है।

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BiTS का असर सिर्फ सतही नहीं है। यह TCR के CD3ε हिस्से को LAG-3 से जोड़ता है, जिससे Lck एंजाइम का कार्य बाधित होता है, यह एंजाइम T-cell एक्टिवेशन के लिए आवश्यक है। यह जैविक इंटरफेरेंस इम्यून सेल को ‘स्लीप मोड’ में डाल देता है, जिससे वह हमला करना बंद कर देता है।

BiTS antibody therapy : टाइप-1 डायबिटीज और हेपेटाइटिस में दिखा असर

BiTS एंटीबॉडी को टाइप-1 डायबिटीज मॉडल वाले चूहों में परीक्षण किया गया, जहाँ यह insulitis (अग्न्याशय पर हमला) को रोकने में सफल रही। इसी तरह हेपेटाइटिस मॉडल में भी लिवर डैमेज और T-cell घुसपैठ में भारी कमी आई।

BiTS antibody therapy : मल्टीपल स्क्लेरोसिस जैसे रोगों में भी लाभकारी

BiTS का परीक्षण CD4+ T-cells आधारित मल्टीपल स्क्लेरोसिस (MS) मॉडल पर भी किया गया। जहां पहले से इलाज शुरू करके रोग की गंभीरता को काफी घटाया गया। यह दर्शाता है कि BiTS दोनों प्रकार के T-cells (CD8+ और CD4+) पर प्रभावी है।

क्या है अगला कदम?

शोधकर्ताओं के अनुसार यह नई रणनीति आगे चलकर अन्य ऑटोइम्यून बीमारियों (Autoimmune diseases), जैसे रुमेटाइड अर्थराइटिस (rheumatoid arthritis) और ल्यूपस (Lupus), में भी प्रयोग की जा सकती है।
 
Dr. Jun Wang, जिन्होंने यह स्टडी लीड की, ने कहा,
“हमारी खोज LAG-3 बायोलॉजी को एक नए स्तर पर ले जाती है और spatial-guided इम्यूनोथेरेपी की नींव रखती है।”

BiTS तकनीक का व्यावसायिक भविष्य

NYU Langone ने इस रिसर्च पर आधारित पेटेंट्स को Remunix Inc. नामक एक स्टार्टअप के माध्यम से कमर्शियलाइज़ करने की योजना बनाई है। Dr. Wang इसके फाउंडर और शेयरहोल्डर हैं। इससे भविष्य में BiTS एक मान्यता प्राप्त थेरेपी के रूप में विकसित की जा सकती है।

BiTS antibody therapy : शोध को किसने फंड किया?

यह रिसर्च Judith and Stewart Colton Center for Autoimmunity, NIH (National Institutes of Health) और National Science Foundation of China द्वारा फंड की गई है। साथ ही NYU का Melanoma SPORE प्रोग्राम भी शामिल है।

FAQs : अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q1. क्या BiTS थैरेपी इंसानों पर भी आज़माई गई है?

नहीं, अभी यह (BiTS antibody therapy) सिर्फ चूहों पर परीक्षण स्तर पर है, लेकिन मानव परीक्षणों की तैयारी की जा रही है। आगे होने वाले और परीक्षणों के बाद कई और नए रास्ते खुलने की उम्मीद की जा रही है।

Q2. क्या BiTS कैंसर का भी इलाज कर सकती है?

नहीं, यह एंटीबॉडी ऑटोइम्यून रोगों के लिए डिजाइन की गई है। LAG-3 के कैंसर इम्यूनोथेरेपी में प्रयोग सीमित है।

Q3. क्या यह थेरेपी पूरी इम्यून सिस्टम को दबाती है?

नहीं, यह केवल उन T-cells को निष्क्रिय करती है जो बीमारी में शामिल होते हैं, बाक़ी इम्यून प्रणाली पर असर नहीं होता।

Q4. BiTS और PD-1 थेरेपी में क्या अंतर है?

PD-1 आधारित थेरेपी कैंसर में कारगर है लेकिन ऑटोइम्यून बीमारियों में कम सुरक्षित। BiTS spatially-guided है और टारगेटेड T-cell suppression करती है।

अस्वीकरण (Disclaimer)


नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

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Pooja Mishra
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"Pooja Mishra is a passionate journalist with 3 years of experience in the field of reporting and storytelling. She loves expressing through words, singing soulful tunes, and exploring adventurous destinations. Her curiosity and creativity fuel her journey in journalism."
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