मंगलवार, नवम्बर 4, 2025
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Gangaram Hospital : मायूस दंपति के लिए नए साल में आशा बनकर आई नन्हीं परी  

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Gangaram Hospital में जटिल परिस्थितियों में दिया संतान को जन्म

नई दिल्ली। टीम डिजिटल : Gangaram Hospital : मायूस दंपति के लिए नए साल में आशा बनकर आई नन्हीं परी – कई सालों से मायूस दंपति की जिंदगी में नए साल पर एक नन्हीं परी आशा बनकर आई। माता-पिता की जिंदगी में खुशहाली का यह आलम दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल (gangaram hospital) के विशेषज्ञों की बदौलत संभव हो पाया। बेहद जटिल और चुनौतिपूर्ण परिस्थितियों में चिकित्सकों ने मां और बच्चे को सुरक्षित उबार लिया। 

आईवीएफ तकनीक की मदद से गर्भवती हुई थी 41 वर्षिय महिला 

 41 वर्षीय महिला आईवीएफ (IVF) प्रक्रिया के माध्यम से गर्भवती हुई थी और सात महीने की गर्भवती थी। उसे 30 दिसंबर की रात पेट के निचले हिस्से में दर्द का अनुभव होने लगा। जिसके बाद डॉक्टरी सहायता की जरूरत पडी। महिला उच्च जोखिम से गुजर रही थी क्योंकि 30 सप्ताह में ही प्रसव पीड़ा शुरू हो गई थी। डॉक्टरों ने उसे तत्काल लेबर रूम में रिपोर्ट करने के लिए कहा। 

छह साल से कर रही थी कोशिश 

दंपति छह साल से संतान के लिए कोशिश कर रहे थे लेकिन समस्या की वजह से हर बार निराशा मिल रही थी। हाइपोक्सेमिक इस्केमिक एन्सेफैलोपैथी के कारण चार साल की उम्र में पहले ही एक बच्चे की मौत ने दंपति को बेहद निराश कर दिया था। इसके बाद उन्होंने दो बार आईवीएफ (IVF) तकनीक का सहारा लिया लेकिन इसमें भी विफलता हाथ लगी। जिसके बाद उन्होंने गंगा राम अस्पताल (Gangaram Hospital) का रूख किया और पहली बार आईवीएफ प्रक्रिया में ही गर्भधारण करने में सफल रही थी। 

जटिल गर्भावस्था से गुजर रही थी महिला 

सर गंगाराम अस्पताल (Gangaram Hospital) के गाइनी विभाग में वरिष्ठ सलाहकार डॉ. रूमा सात्विक के मुताबिक, इस मामले के प्रबंधन के दौरान कई चुनौतियां थीं। उनकी वर्तमान गर्भावस्था मधुमेह की वजह से जटिल हो चुकी थी। इसके अलावा महिला का समय से पहले प्रसव पीड़ा में चला जान भी था। मधुमेह माताओं में समय से पहले प्रसव की वजह साबित हो सकता है।
बच्चे को सांस लेने में दिक्कत होने के साथ  वेंटिलेटरी सपोर्ट की आवश्यकता थी। वहीं पीलिया जैसी चयापचय संबंधी जटिलताओं के साथ लो सुगर लेवल और संक्रमण आदि की समस्या थी। सर गंगा राम अस्पताल में लेबर रूम के डॉक्टरों द्वारा डिलीवरी के लिए समय निर्धारित किया गया ताकि बच्चे के फेफड़ों की परिपक्वता के लिए स्टेरॉयड इंजेक्शन दिया जा सके लेकिन यह मेहनत बेकार चली गई। 


मरीज का इतिहास देखते हुए तय हुआ सिजेरियन 

डॉक्टरों ने मरीज के पिछले बच्चे के जन्म के इतिहास को देखते हुए सिजेरियन करने का फैसला किया। इसलिए एलएससीएस के माध्यम से तत्काल डिलीवरी की योजना बनाई गई थी। नवजात गहन देखभाल इकाई को अलर्ट पर रहने के लिए कहा गया। प्रसूति और नवजात दोनों पक्षों को लेकर उस रात कॉल पर वरिष्ठतम डॉक्टर मौजूद रहे।
प्रसूति, नियोनेटोलॉजी और एनेस्थीसिया के डॉक्टरों, नर्सों और तकनीशियनों सहित दस सदस्यों की एक टीम बनाई गई और 31 दिसंबर को तड़के 1.88 किलोग्राम वजन की एक बच्ची सुरक्षित रूप से इस दुनिया में आ गई। सुबह 2.30 बजे शुरू हुई सर्जरी में 2 घंटे का समय लगा और 04.30 बजे सर्जरी खत्म हुई।

जल्दी मिलेगी अस्पताल से छुट्टी 

विशेषज्ञों के मुताबिक, बच्चा 48 घंटे से अधिक का हो चुका है और उसकी हालत स्थिर है। वह अपने दम पर सांस ले रहा है और नाक की नली के माध्यम से मां का दूध ग्रहण कर रहा है।नियोनेटोलॉजिस्ट उसे जल्द ही स्थिर स्थिति में घर वापस भेजने की उम्मीद कर रहे हैं।
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

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