दिल्ली (Delhi) के सर्वे परिणाम पर विशेषज्ञ जता रहे हैं चिंता
Delhi Health News : दिल्लीवासियों का स्वास्थ्य खतरे में है। यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि स्वास्थ्य विशेषज्ञों का ऐसा ही मानना है। हाल में ही लिवर और पित्त विज्ञान संस्थान (ILBS) ने एक सर्वे किया है।
सर्वे के जो परिणाम सामने आए हैं, वह जितना चौंकाने वाले साबित हो रहे हैं, उतना ही चिंता बढाने वाले भी लग रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर शीघ्र ही इस स्वास्थ्य समस्या को लेकर जागरुकता नहीं फैलाई गई, तो दिल्ली की आबादी को गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों (Serious health challenges to the population of Delhi) का सामना करना पड सकता है।
Delhi Health : कम आयु के हर दो में से एक fatty liver से प्रभावित
राजधानी दिल्ली (Delhi Health) के 11 जिलों में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि 18 वर्ष से ऊपर के हर दो में से लगभग एक व्यक्ति को फैटी लिवर की समस्या है। यह समस्या मेटाबॉलिज्म (Metabolism) से जुड़ी हुई होती है। यह सर्वे लिवर और पित्त विज्ञान संस्थान (Institute of Liver and Biliary Sciences) ने किया था। इस सर्वे में 6 हजार से अधिक लोगों को शामिल किया गया। आईएलबीएस विशेषज्ञों के मुताबिक, सर्वे में शामिल कुल लोगों में से 56 प्रतिशत (3,468 प्रतिभागियों) में एमएएफएलडी से प्रभावित पाए गए हैं।
ज्यादातर लोग मोटोपे का शिकार
सर्वे में शामिल ज्यादातर लोग अधिक वजन और मोटापे से पीडित पाए गए हैं। जबकि, 11 प्रतिशत लोग सामान्य वजन से कम और दुबले-पतले पाए गए। एलिमेंटरी फार्माकोलॉजी एंड थेरेप्यूटिक्स जर्नल (Journal of Alimentary Pharmacology and Therapeutics) में प्रकाशित सर्वे में कुछ ऐसे ही परिणाम बताए गए हैं। सर्वेक्षण रिपोर्ट के लेखक और आईएलबीएस के निदेशक, डॉ. एसके सरीन (Director of ILBS, Doctor SK Sarin) के मुताबिक, एमएएफएलडी का प्रभाव पहले की तुलना में अधिक होता दिख रहा है।
इस समस्या को पहले नॉन-अल्कोहलिक फैटी लीवर (Non-Alcoholic Fatty Liver) कहा जाता था। इस सर्वेक्षण को मोहल्ला क्लीनिकों के आसपास या वहां पहुंचकर किया गया है। डॉ. सरीन के अनुसार, सर्वे के परिणाम चिंता बढाने वाले साबित हो रहे हैं। ऐसे में हमें बढ़ती हुई इस सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या (growing public health problem) को लेकर व्यापक स्तर पर जागरुकता फैलाने की जरूरत है। इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए समय रहते जरूरी कदम उठाने पडेंगे। जिससे इससे जुडी हुई बीमारियों का जोखिम कर इससे होने वाली मृत्युदर को रोका जा सके।
क्या है MAFLD/NAFLD?
एमएएफएलडी एक या एक से अधिक मेटाबोलिक रिस्क फैक्टर (अधिक वजन/मोटापा, टाइप 2 मधुमेह, ब्लड में बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल और मेटाबॉलिक डिसरेगुलेशन (metabolic dysregulation) और लीवर में फैट बनने) को बढाता है। एमएएफएलडी का संबंध गंभीर लीवर रोगों (severe liver diseases) से है। जिसमें, Non-Alcoholic Steatohepatitis (बहुत कम या बिल्कुल शराब न पीने वाले लोगों में लिवर में फैट का जमा होना), लिवर में घाव (liver lesions) या स्थायी क्षति, लिवर कैंसर (liver cancer) और अंततः समय से पहले होने वाली मौत शामिल है।
डॉ. सरीन के मुताबिक, फैटी लीवर, हाई कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेश और अन्य नॉन-कम्युनिकेबल रोगों से करीब 10-15 साल पहले उभरता है। फैटी लीवर को नियंत्रित किया जा सकता है। इसे रिवर्स भी कर सकते हैं। ऐसा कर एक दशक में हम इस समस्या के बोझ से उबर सकते हैं।
ऐसे करें बचाव
आईएलबीएस निदेशक के अनुसार, एमएएफएलडी के जोखिम को कम करने के लिए जीवनशैली और आहार में सुधार करना बेहद जरूरी है। वजन को नियंत्रित रखने के साथ नियमित व्यायाम, समय पर भोजन और बचपन के मोटापे को नियंत्रित कर हम इस समस्या से बच सकते हैं।