Friday, December 6, 2024
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Ankylosing Spondylitis : CRP को मैनेज करना है तो अपनाएं ये ‘इफैक्टिव प्लान’

सवाल यह उठता है कि आखिर हम ऐसा करें, जिससे Ankylosing Spondylitis में हम लंबे समय तक रेमिशन (Remission) प्राप्त कर सकें और इसके लिए हमें महंगी दवाइयां भी न लेनी पडें क्या कोई और भी ऐसा तरीका है? 

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एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (Ankylosing Spondylitis) में सूजन कंट्रोल (CRP) करने का प्रभावी तरीका

Ankylosing Spondylitis (AS) के ट्रीटमेंट (Treatment) में सबसे important गोल क्या होता है? इसकी सिम्टम (Symptoms) को मैनेज करके लंबे समय तक रेमिशन (Remission) हासिल करना। एएस (AS) में रेमिशन इसलिए भी Important है क्योंकि इस पीरियड में एएस वॉरियर्स (AS Warriors) को पेन और इंफ्लामेशन (Pain and inflammation) और स्टिफनेस (Stiffness) से राहत मिलती है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि एएस वॉरियर्स (Ankylosing Spondylitis Warriors) को राहत देने वाले रेमिशन पीरियड में एएस की प्रोगरेशन (Progression of Ankylosing Spondylitis) भी स्लो हो जाती है और पेन, स्टिफनेस और इंफ्लामेशन से भी राहत मिल जाती है और इसी रेमिशन को हासिल करने के लिए  हमें बायोलॉजिक्स (Biologics) जैसी महंगी दवाइयां लेनी पडती हैं, जिसका प्रभाव कुछ महीनों तक सीमित रहता है और उसके बाद फिर से पेन, स्टिफनेस और इंफ्लामेशन हमें सताने लगता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो इन तमाम प्रयासों के बाद भी एएस वॉरियर्स की लाइफ का स्ट्रगल (Struggle of life of Ankylosing Spondylitis Warriors) जारी रहता है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर हम ऐसा करें, जिससे हम लंबे समय तक रेमिशन प्राप्त कर सकें और इसके लिए हमें महंगी दवाइयां भी न लेनी पडें क्या कोई और भी ऐसा तरीका है?
तो आपको बता दें कि ऐसा संभव है और कमाल की बात यह है कि इस तरीके से नए और एडवांस स्टेज वाले एएस (Ankylosing Spondylitis) वॉरियर्स को भी राहत मिल सकती है। इस बारे में हम आपको विस्तार से जानकारी देंगे।

सबसे पहले समझें Ankylosing Spondylitis और CRP में संबंध

Ankylosing Spondylitis : CRP को मैनेज करना है तो अपनाएं ये इफैक्टिव प्लान
Ankylosing Spondylitis : CRP को मैनेज करना है तो अपनाएं ये इफैक्टिव प्लान
एएस को मैनेज करने के लिए सबसे पहले आपको Ankylosing Spondylitis और सी रियेक्टिव प्रोटीन (C-reactive protein) यानि सीआरपी (CRP) के बीच के संबंध को समझना होगा क्योंकि आपके एएस को इफेक्टिव तरीके से मैनेज करने में सीआरपी बहुत बडी भूमिका निभा सकता है। तो चलिए, बेहद इजी तरीके से पहले आपको सीआरपी के बारे में कुछ खास बातें शेयर कर देता हूं।

CRP क्या है?

CRP एक प्रकार का प्रोटीन है, जो हमारे लिवर में बनता है। जब हमारे शरीर में कहीं भी सूजन या इन्फेक्शन होता है, तो हमारा लिवर अधिक मात्रा में CRP बनाने लगता है। यह एक ऐसा मार्कर है, जिससे यह पता चलता है कि  हमारे शरीर में कोई समस्या है, जैसे संक्रमण, सूजन या कोई गंभीर बीमारी।

CRP Test क्या है?

इस टेस्ट के जरिए यह जान सकते हैं कि शरीर में कितनी सूजन है और इसका स्तर कितना बढ़ा हुआ है। इस टेस्ट का उपयोग कई बीमारियों के निदान और उपचार के लिए भी किया जाता है।

CRP टेस्ट के अन्य प्रकार 

CRP टेस्ट के दो मुख्य प्रकार होते हैं:

 स्टैंडर्ड CRP टेस्ट

इसका उपयोग सामान्य सूजन और इन्फेक्शन की जांच के लिए किया जाता है।

 हाई-सेंसिटिव CRP टेस्ट ( hs-CRP)

इसे हृदय रोगों के जोखिम को समझने के लिए किया जाता है। इसमें CRP के बहुत छोटे स्तरों की भी जांच की जाती है।

CRP के सामान्य स्तर क्या होते हैं?

सामान्य तौर पर, शरीर में CRP का स्तर 1.0 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होता है। अगर यह 1.0 से 3.0 मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच है, तो इसे हल्की सूजन के साथ सामान्य माना जाता है।  अगर CRP का स्तर (CRP levels) 3.0 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक हो, तो यह सूजन या इन्फेक्शन का संकेत हो सकते है।

CRP का उच्च स्तर किन समस्याओं का संकेत दे सकता है?

CRP का उच्च स्तर शरीर में इन समस्याओं का संकेत हो सकता है: जैसे Rheumatoid Arthritis, किसी तरह का Infection, Heart Disease, Autoimmune Disease, Inflammatory Bowel Disease (IBD)
और Lung Conditions.

रूमेटोलॉजिस्ट के लिए क्यों महत्वपूर्ण है आपका CRP टेस्ट?

Ankylosing Spondylitis : CRP को मैनेज करना है तो अपनाएं ये इफैक्टिव प्लान
Ankylosing Spondylitis : CRP को मैनेज करना है तो अपनाएं ये इफैक्टिव प्लान
CRP टेस्ट डॉक्टरों को यह समझने में मदद करता है कि मरीज के शरीर में सूजन की स्थिति कितनी गंभीर है। इससे डॉक्टर उपचार की सही योजना आसानी से बना पाते हैं।
अभी यह समझ लिया होगा कि सीआरपी क्या होता है (what is crp), सीआरपी क्यों महत्वपूर्ण है (Why is CRP important?) अब  हम आपको बताएंगे कि Ankylosing Spondylitis को मैनेज करने में सीआरपी कैसे बडी भूमिका निभा सकता है। इसके लिए आइए सबसे पहले यह समझते हैं कि एएस और सीआरपी के बीच क्या महत्वपूर्ण संबंध (What is the significant relationship between Ankylosing Spondylitis and CRP?) है?
जब इम्यून सिस्टम (Immune System) हमारे जोडों पर अटैक करता है, तब जोडों के बीच मौजूद सॉफ्ट टिश्यूस (soft tissues between joints) में इंफ्लोशन यानि सूजन पैदा होता है, जिसके कारण हमारे जोडों में असहनीय पेन, स्टिफनेस होने लगती है। धीरे-धीरे जोडों के बीच मौजूद शॉफ्ट टिश्यू डैमेज होकर नष्ट हो जाते हैं और ठोस हड्डियों में परिवर्तित हो जाते हैं। जिसे हम मेडिकल साइंस की भाषा में ज्वाइंट फ्यूजन (Joint Fusion) कहते हैं।
अगर आप इस पूरे प्रोसेस को ध्यान से समझें तो पाएंगे कि यह सब जोडों के बीच मौजूद सॉफ्ट टिश्यूज में इंफ्लामेशन (inflammation in the soft tissues between the joints) यानि सूजन की वजह से ही होता है, ऐसे में आपके शरीर में सीआरपी का लेवल तेजी से बढता है, अगर सूजन ज्यादा है, तो सीआरपी लेवल ज्यादा बढता है वहीं, अगर सूजन कम है तो सीआपी लेवल कम बढा हुआ होता है, सीआरपी हमें इंडिकेट करता है कि आपके शरीर में सूजन किस स्तर का है। यानि हमारे जोडों में सूजन बढ रहा है या घट रहा है, यह हमें सीआरपी टेस्ट से आसानी से पता चलता है।
यहां आप यह समझ गए होंगे कि एएस और सीआपी के बीच क्या महत्वपूर्ण संबंध है। अब आइए आपको बताते हैं कि आप सीआरपी की मदद से कैसे एएस की एक्टिविटी को मैनेज और स्लो कर सकते हैं?  (How can we manage and slow down the activity of Ankylosing Spondylitis with the help of CRP?)

Ankylosing Spondylitis and CRP के संबंध और Effective AS Mangement के लिए विडियो देखें –

शरीर में एएस के प्रोग्रेशन और एक्टिविटी को स्लो करने के लिए सबसे जरूरी है कि आपका सीआरपी लेवल कम रहे ऐसे में हमें वे तरीके अपनाने होंगे, जिससे हम अपने सीआरपी लेवल को सामान्य बनाए रख सकते हैं सीआरपी लेवल को सामान्य बनाएं रखने के लिए  आप अपनी दवाइयों के साथ कुछ ऐसे उपाए भी कर सकते हैं, जिससे आप तेजी से अपने शरीर में बढे हुए सीआरपी लेवल को कम कर सकते हैं। आइए अब उन उपायों के बारे में जानते हैं।

Ankylosing Spondylitis and CRP के संबंध और Effective AS Mangement के लिए विडियो देखें –

https://www.youtube.com/live/qmoKYmt8eQ

सीआरपी के लेवल को कम करने के लिए आपको  सबसे पहले अपनी डाइट और लाइफ स्टाइल में कुछ जरूरी मोडिफिकेशन करने होंगे। हम सबसे पहले आपको उन मोडिफिकेशन के बारे में बता रहे हैं, जिसे आप अनिवार्य रूप से करना चाहिए।

पहला मोडिफिकेशन 

वजन बढा है तो उसे जरूर घटाएं –

वजन और बढे हुए सीआरपी लेवल के बीच संबंध (Relationship between weight and increased CRP levels) के बारे में एक स्टडी की गई, जिसमें यह साबित हुआ है कि मोटापा सीआरपी लेवल बढाने वाले सबसे मजबूत कारणों में से एक होता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक,शरीर के कुल वजन और फैट मास को 5 प्रतिशत तक कम करने से सीआरपी के स्तर में प्रभावी रूप से कमी लाई जा सकती है।

दूसरा मोडिफिकेशन 

Optimistic Approach यानि आशावादी दृष्टीकोण अपनाए :

एएस वॉरियर्स (Ankylosing Spondylitis Warriors) को हमेशा यह सलाह दी जाती है कि आप जितना हो सके तनाव और डिप्रेशन (Stress and depression) से बचें। खुद को बूस्टअप करते रहें। अपने आत्मविश्वास को बनाए रखें। इस एडवाइस को सुनकर थोडी देर के लिए आप ऐसा सोच सकते हैं कि यह केवल एक कहने की बात है लेकिन pessimistic approach यानि निराशावादी दृष्ट्रीकोण और सीआरपी लेवल के बीच साइंटिफिक कनेक्शन (Scientific connection between pessimistic outlook and CRP levels) भी रिसर्च और स्टडी में प्रूव हो चुका है।
 जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि अगर आप जिंदगी के प्रति निराशावादी सोच अपना रहे हैं तो साथ ही आप अपने शरीर में सीआरपी लेवल को भी इंक्रीज कर रहे हैं और अगर आप एएस वॉरियर हैं, तो आपकी निराशावादी सोच आपके शरीर में सीआरपी लेवल को बढा सकती है, जिससे आपकी पेन, स्टिफनेस और इंफ्लामेशन भी बढेगी।

तीसरा मोडिफिकेशन

एक्सरसाइज (डीप ब्रीदिंग)

सीआरपी लेवल पर एक्सरसाइज यानि खासतौर से डीप ब्रीदिंग का काफी प्रभाव पडता हुआ पाया गया है।इस बारे में की गई रिसर्च से यह प्रमाणित हुआ है कि जब आप एक्सरसाइज करते हैं तब आपके शरीर का सीआरपी लेवल प्रभावित होता है।
रिसर्च के मुताबिक, खासतौर से डीप ब्रीदिंग, योगा, मेडिटेशन सीआरपी के बढे स्तर को कम कर सकती है।
ये तो कुछ जरूरी मोडिफिकेशंस थे, जिसकी मदद से आप सीआरपी लेवल को कम कर सकते हैं। अब हम आपको कुछ ऐसी चीजों के बारे में बता रहें हैं, जिसका उपयोग आप रोज करें तो सीआरपी लेवल को कम करने में काफी मदद मिल सकती है। 
इन्हें आप अपनी डाइट में रोज शामिल कर बेनिफिट प्राप्त कर सकते हैं। एएस की अपनी दवा (Ankylosing Spondylitis medication) के साथ अगर आप इन चीजों को रोजना प्रयोग करें, तो इससे सीआरपी लेवल को कंट्रोल करने की कोशिश और भी इफेक्टिव हो सकती है।

अखरोट और फ्लैक्स सीड्स (Walnuts and Flax Seeds)

सीआरपी लेवल को कंट्रोल रखने में अखरोट और फ्लैक्स सीड्स बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है। डाइट विशेषज्ञों के मुताबिक, अखरोट और फ्लैक्स सीड्स में काफी मात्रा में ओमेगा-3 (Omega 3) फैटी एसिड्स पाई जाती है। जो एंटी-इंफ्लामेटरी गुणों  (Anti-inflammatory properties) से भरपूर होते हैं। रोजाना 1-2 अखरोट और 1 चम्मच फ्लैक्स सीड्स को खाने से सीआरपी कम होता है।

हल्दी (Turmeric)

हल्दी में एक विशेष एंटी-इंफ्लामेटरी तत्व (anti-inflammatory agent) पाया जाता है जिसे करक्युमिन (Curcumin) कहते हैं। करक्युमिन की वजह से ही हल्दी का रंग पीला दिखता है। हल्दी के नियमित प्रयोग से सीआरपी लेवल को कम किया जा सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इसे रात को सोते समय गुनगुने दूध या पानी में लेने से विशेष लाभ मिल सकता है।

दालचीनी  (cinnamon)

सीआरपी लेवल को कम करने वाली दालचीनी ज्यादातर लोगों के किचन में उपलब्ध होती है। यह एक बेहतरीन एंटी-इंफ्लामेटरी हर्ब (Anti-inflammatory herb) है। जो सीआरप वैल्यू (CRP value) को कम करने में मदद करती है।दालचीनी में सिनामाल्डिहाइड (cinnamaldehyde) पाया जाता है। जो इंफ्लामेशन को कम करने में मदद करता है।  दालचीनी को आप चाय में या फिर किसी करी में डालकर इस्तेमाल कर सकते हैं। इसका इस्तेमाल मसाले के तौर पर भी कर सकते हैं।

लहसुन (Garlic)

 हर किचन में आसानी से पाया जाने वाला लहसुन सीआरपी लेवल को प्रभावी तरीके से कंट्रोल करने में सक्षम है। इसमें मौजूद सूजनरोधी तत्व सीआरपी लेवल को कंट्रोल करने के साथ गैस की समस्या को भी कम करने में उपयोगी साबित हो सकता है। रोज 1 लहसुन की गंठी खाने से सीआरपी लेवल को मेनेज करने में मदद मिलती है।

ग्रीन टी एक्सट्रैक्ट (Green Tea Extract)

एक्सपर्ट्स बताते हैं कि सीआरपी लेवल को कम करने में ग्रीन टी (Green Tea) भी काफी मदद कर सकता है। ग्रीन टी में कैटेचिन (Catechin) नामक एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidants called catechins in green tea) से भरपूर मात्रा में पाई जाती है। जिसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी प्रभाव होते हैं।

रेस्वेराट्रोल युक्त आहार (Resveratrol-Rich Diet)

 सीआरपी के स्तर को कम या कंट्रोल करने में रेस्वेराट्रोल (Resveratrol) नामक नेचुरल कंपाउंड (A natural compound called resveratrol) को भी प्रभावी पाया गया है। अंगूर और बेरी जैसे आहार में यह कंपाउंड अधिक मात्रा में पाई जाती है। इन्हें अपने डेली डाइट में शामिल करने से सीआरपी लेवल को कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है।

प्रोबायोटिक्स वाले आहार (Foods with probiotics)

 प्रोवायोटिक्स युक्त आहार को भी सीआरपी लेवल कम करने वाले गुणों वाला बताया गया है। प्रोबायोटिक गुणों से भरपूर डाइट लेने से खासतौर से आईबीएस जैसी क्रॉनिक इंफ्लामेट्री बीमारियों मेंराहत पाई जा सकती है। प्रोबायोटिक युक्त खाद्य पदार्थ में दही, केफिर और fermented सब्जियाँ शामिल हैं।
 अभी आपने लाइफ स्टाइल मोडिफिकेशन और कुछ खास food stuf​fs के बारे में जाना जिसकी मदद से हम सीआरपी के लेवल को कम या कंट्रोल कर सकते हैं। आइए, अब आपको वैसे food stuffs के बारे में बताते हैं, जिसे खाने से किसी एएस (Ankylosing Spondylitis) वॉरियर्स की सीआरपी लेवल बढ सकती है और उनके शरीर में पेन, स्टिफनेस और इंफ्लामेशन जैसे सिम्टम बढ सकते हैं।

ज्यादा शुगर वाले खाद्य पदार्थ (high sugar foods)

वैज्ञानिकों ने एक साइटिफिक रिसर्च में यह पाया कि हाई शुगर इन्टेक यानि ज्यादा मात्रा में शुगर लेने से ऑटोइम्यून डिजीज के लक्षण (Symptoms of autoimmune diseases) बढ सकते है। यह रिसर्च वर्ष 2019 यानि आज से पांच वर्ष पहले चूहों पर की गई थी।जिसमें वैज्ञानिकों यह एविडेंस मिले थे कि शुगर की ज्यादा मात्रा वाले पेय पदार्थ या आहार ऑटोइम्यून बिमारियों के लक्षणों को ज्यादा भडका सकते हैं।
ऑटोइम्यून डिसऑर्डर (Autoimmune Disorders) से संबंधित माउस मॉडल पर रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों ने यह पाया कि अत्यधिक मात्रा में शुगर, शॉल्ट या फैट वाले पेय पदार्थों को पीने से इंफ्लामेशन पैदा करने वाले सेल्स तेजी से सक्रिय हो गए। जिसके कारण बीमारी के लक्षण काफी बिगड गए। यानि, इस रिसर्च से हमें यह जानकारी मिलती है कि एएस (Ankylosing Spondylitis) जैसे ऑटोइम्यून डिजीज (autoimmune diseases such as AS) वाले वॉरियर्स के लिए अत्यधिक मात्रा में शुगर, शॅाल्ट और फैट कंज्यूम करने से पेन, स्टिफनेस और सूजन बढ सकते हैं।

रेड मीट (Red Meat)

 सीआपी लेवल यानि शरीर में इंफ्लामेशन बढाने में रेड मीट की भी बडी भूमिका होती है। जब से बाजारों में पैकेट बंद रेड मीट का प्रचलन शुरू हुआ है, तब से रेड मीट किसी ऑटोइम्यून यानि एएस वॉरियर्स के लिए और भी हानिकारक हो गया है।
वर्ष 2021 में किए गए साइंटिफिक स्टडी में रेड मीट और इंफ्लामेशन के बीच का लिंक (The link between red meat and inflammation) प्रूव हुआ है। आपको यह बता दें कि एंकिलूजिंग स्पॉन्डिलाइटिस और रूमेटाइड अर्थराइटिस (Ankylosing spondylitis and rheumatoid arthritis) दोनों ही एक ऑटोइम्यून रूमेटिक डिसऑर्डर (Autoimmune Rheumatic Disorder) हैं।
एएस (Ankylosing Spondylitis) के मामलों में मरीज के शरीर की बिग ज्वाइंट प्रभावित होती है तो रूमेटाइ​ड अर्थराइटिस के मरीजों में स्मॉल ज्वाइंट्स खराब हो जाते हैं।
एएस (Ankylosing Spondylitis) और रूमेटाइड अर्थराइटिस के लक्षणों और इनके इलाज (Symptoms and treatment of Ankylosing Spondylitis and rheumatoid arthritis) में भी काफी समानताएं देखने को मिलती है। इसलिए, रेड मीट और रूमेटाइड अर्थराइटिस से संबंधित इस स्टडी (study related to red meat and rheumatoid arthritis) के नतीजे एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस वॉरियर्स को भी सतर्क करने के लिए काफी है।
Ankylosing Spondylitis : CRP को मैनेज करना है तो अपनाएं ये इफैक्टिव प्लान
Ankylosing Spondylitis : CRP को मैनेज करना है तो अपनाएं ये इफैक्टिव प्लान
रिसर्च में वैज्ञानिकों ने 707 रूमेटाइड अर्थराइटिस वाले मरीजों को शामिल किया था। इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने रेड मीट खाने वाले कई प्रतिभागियों में रूमेटाइड अर्थराइटिस डेवलप होता हुआ पाया। रिसर्च के नतीजों को एनलाइज करने के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि अत्यधिक मात्रा में रेड मीट के उपयोग से  रूमेटाइड अर्थराइटिस का जोखिम बढता है  और जिन्हें पहले से इस तरह की ऑटोइम्यून रूमेटिक डिजीज है, रेड मीट कंज्यूम करने से उनके लक्षण और अधिक बिगड सकते हैं।

प्रोसेस्ड फूड्स (Processed foods)

प्रोसेस्ड फूड जैसे फास्ट फूड, फ्रोजन मिल्स और पैक किए गए स्नैक्स एएस और दूसरे ऑटोइम्यून रूमेटिक डिजीज वाले मरीजों के लिए हानिकारक होते हैं। इनमें काफी मात्रा में अनहेल्दी फैट्स, शुगर और प्रिजर्वेटिव्स होते हैं। ये तत्व शरीर में सूजन को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे जोड़ों में दर्द और कठोरता बढ़ जाती है।

रिफाइन्ड कार्बोहाइड्रेट (Refined Carbohydrates)

रिफाइन्ड कार्बोहाइड्रेट वाले खाद्य पदार्थों में जरूरी पोषक तत्वों और फाइबर की कमी होती है। यह ब्लड में शुगर का लेवल भी बढाते हैं। जिसके कारण ऑटोइम्यून रूमेटिक डिजीज या अर्थराइटिस के मरीजों में ज्वाइंट पेन बढ सकता है। यही कारण है कि ऐसे मरीजों को रिफाइन्ड कार्बोहाइड्रेट वाले खाद्य पदार्थ लेने से मना किया जाता है।

नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

अस्वीकरण: caasindia.in में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को caasindia.in के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। caasindia.in लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी/विषय के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

 

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