जांघों में फंगल संक्रमण (fungal infection) की होम्योपैथिक उपचार – homeopathy treatment for fungal infection
नई दिल्ली। टीम डिजिटल : जांघों में फंगल संक्रमण की Homeopathy में अचूक दवा – फंगल संक्रमण के लिए होम्योपैथिक उपचार काफी प्रभावी माना जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि होम्योपैथी दवा प्रभावित स्थान को न केवल संक्रमण मुक्त बनाती है बल्कि प्रभावित हिस्से पर प्राकृतिक रूप से यथा स्थिति भी बहाल करती है। होम्योपैथिक विशेषज्ञ डॉ. कुमारी नीता के मुताबिक होम्योपैथी दवाएं चकत्तों को ठीक करने और खुजली, जलन, स्राव और दर्द जैसे लक्षणों में राहत देती है।
फंगल संक्रमण के लिए होम्योपैथिक दवाएं – homeopathic medicines for fungal infection
फंगल संक्रमण (जांघों में फंगल संक्रमण/ fungal infection) के उपचार में विशेषतौर से सीपिया, टेल्यूरियम, ग्रेफाइट्स, सल्फर, सिलिसिया, थूजा, एंटीमोनियम क्रूडम, बैसिलिनम, बोरेक्स और पल्सेटिला का प्रयोग किया जाता है। ये दवाएं इस संक्रमण को खत्म करने में बेहद प्रभावी मानी जाती है।
Best homeopathy medicine for fungal infection
1. सेपिया (sepia) – फंगल संक्रमण और दाद के लिए है खास
फंगल संक्रमण, (fungal infection) में खासतौर से त्वचा के दाद (टिनिया कॉर्पोरिस) के उपचार में सेपिया होम्योपैथिक दवाओं की लिस्ट में सबसे खास मानी जाती है। त्वचा के ऊपर पर अलग-अलग स्थानों पर रिंग यानि गोलाकार, अंगूठी के आकार के जख्म पर इस दवा का प्रयोग अचूक माना जाता है। इस तरह का फंगल संक्रमण में खुजलाने पर खुजली और जलन के साथ पानी जैसा डिस्चार्ज भी हो सकता है। अगर ऐसा दाद या संक्रमण अगर खासतौर से वसंत ऋतु में प्रभावित करता है, तब इसके उपचार में सेपिया सबसे बेहतरीन विकल्प साबित होता है।
सेपिया का उपयोग (use of sepia)
सेपिया का उपयोग विभिन्न प्रकार के गोलाकार जख्मों और दाद के संक्रमण (जांघों में फंगल संक्रमण/ fungal infection) के लिए किया जाता है। यह दवा निम्न से लेकर उच्च पोटेंसी में उपलब्ध है। संक्रमण की तीव्रता के हिसाब से इस दवा का डोज तय किया जाता है। इस दवा की शुरूआत 30C पोटेंसी से करनी चाहिए। लक्षण और संक्रमण की गंभीरता के आधार पर सेपिया 30सी का उपयोग प्रतिदिन एक से दो बार करने की सलाह दी जाती है।
अगर इसके बाद भी समस्या में किसी तरह की सुधार महसूस न हो तो 200C या 1 एम की उच्च क्षमता के डोज के इस्तेमाल के लिए होम्योपैथिक विशेषज्ञ से परामर्श लेना उचित होता है।
2. टेल्यूरियम (tellurium) – कई छल्लों वाले दाद में असरदार
जब कई रिंग के आकार के दाद संक्रमण एक साथ जुडे हो, ऐसे संक्रमण के उपचार में टेल्यूरियम का प्रयोग बेहद फायदेमंद साबित होता है। इस संक्रमण (fungal infection) की स्थिति में त्वचा के जख्म ऊपर की ओर उभर जाते हैं। यह धीरे’-धीरे पूरे शरीर में फैल जाते हैं। कई बार इन जख्मों को हल्की स्केलिंग ढक देती है। कुछ मामलों में छल्लों के ऊपर तरल पदार्थ से भरी छोटी-छोटी गांठें भी उभर आती है। इसके साथ त्वचा पर जलन या गर्माहट का भी अहसास हो सकता है।
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टेल्यूरियम का उपयोग | Use of tellurium
आपस में जुडे हुए छल्लेनुमा दाद के लिए 30C पोटेंसी वाली यह दवा शुरूआत में प्रतिदिन एक या दो बार दिया जाता है। अगर समस्या से राहत नहीं मिलती तो टेल्यूरियम 200C को दिन में एक बार लिया जा सकता है।
3. ग्रेफाइट्स (graphites) – त्वचा की परतों के बीच दाने के साथ फंगल संक्रमण की स्थिति में फायदेमंद-
त्वचा की परतों को प्रभावित करने वाले फंगल संक्रमण के उपचार में ग्रेफाइट्स खास असरदार है। जब ग्रोइन्स (पेट और जांघ के जंक्शन पर बनने वाली सिलवट), Homeopathy medicine for fungal infection in thighs अंगों के मोड़ (जैसे घुटनों के पीछे, कोहनी मोड़), गर्दन के मोड़, कानों के पीछे और पैर की उंगलियों के बीच में दाने हों तब इस दवा का प्रयोग किया जाता है।
प्रभावित हिस्से में लालीमा के साथ दर्द भी महसूस हो सकता है। कई बार प्रभावित हिस्सों से पानी जैसा, चिपचिपा स्राव भी निकलने की समस्या होती है। त्वचा की परतों में दरारें पड़ने की समस्या में भी यह दवा फायदेमंद है। संक्रमण प्रभावित क्षेत्र में होने वाली खुजली रात के समय बढ सकती है। कमर के क्षेत्र में दाने के मामलों में यह दवा बेहद असरदार माना जाता है।
ग्रेफाइट्स का उपयोग | Use of graphites
फंगल संक्रमण (जांघों में फंगल संक्रमण/ fungal infection) के कारण सिलवटों के बीच दाने होने की सूरत में इस दवा का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा अगर सिलवटों में दरारें दिखाई देती हैं और प्रभावित त्वचा क्षेत्र से पानी जैसा चिपचिपा तरल पदार्थ निकलता है, ऐसी स्थिति में इस दवा को बेहद प्रभावी माना गया है।
संक्रमण के हल्के मामलों में दिन में एक बार ग्रेफाइट्स 3X की एक गोली और मध्यम तीव्रता के मामले में दिन में दो बार एक गोली से शुरुआत की जानी चाहिए। 3X इस दवा की सबसे न्यूनतम क्षमता होती है। वहीं, यह दवा की 30C, 200C, 1M जैसी उच्च क्षमताओं में भी उपलब्ध है। इस दवा का उपयोग बिना विशेषज्ञ की सलाह के नहीं की जानी चाहिए।
4. सल्फर (Sulphur) – गंभीर खुजली, जलन के साथ फंगल संक्रमण में प्रभावी
सल्फर का प्रयोग त्वचा के चकत्तों में खुजली और जलन को प्रबंधित करने के लिए किया जाता है। संक्रमण प्रभावित हिस्सा खुजली के साथ सूखा और पपड़ीदार होता है और रात में स्थिति बदतर होने लगती है। धोने से संक्रमण की स्थिति और बिगड जाती है। खुजली करने पर त्वचा में जलन महसूस होती है। संक्रमण प्रभावित हिस्सा को छूने से ही दर्द महसूस हो तो ऐसी स्थिति से निपटने में सल्फर काम आता है।
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सल्फर का उपयोग | Use of Sulphur
गंभीर खुजली और जलन की स्थिति वाले संक्रमण में इसका प्रयोग किया जाना चाहिए। इसका उपयोग कई पावर में किया जा सकता है लेकिन 30C का प्रयोग सबसे संतुलित माना जाता है। संक्रमण के हल्के मामलों में सल्फर 30C का उपयोग सप्ताह में एक या दो बार करने की सलाह दी जाती है।
यदि खुजली और जलन ज्यादा गंभीर है तो प्रतिदिन एक बार सल्फर 30C का उपयोग किया जा सकता है।इसे प्रतिदिन एक से ज्यादा बार इस्तेमाल न करें। यह होम्योपैथी की पावरफुल दवाओं में से एक है। बिना किसी योग्य चिकित्सक की सलाह के इसकी उच्च क्षमता की डोज लेना खतरनाक साबित हो सकता है।
5. सिलिकिया (Silicea) – पैरों के फंगल संक्रमण यानि एथलीट फुट (टिनिया पेडिस) की अचूक दवा
पैरों में होने वाले फंगल संक्रमण के लिए सिलिकिया सबसे बेहतरीन दवा मानी जाती है। पैर की उंगलियों के बीच की त्वचा में दरार के साथ प्रभावित हिस्से में कच्चापन और दर्द होने की स्थिति में इस दवा का प्रयोग किया जाता है। ऐसी स्थिति में त्वचा की बाहरी परत उखडने की भी लगती है। संक्रमण से प्रभावित हिस्से में खुजली के साथ दर्द भी हो सकता है। संक्रमण की जगह से बदबू वाला स्राव भी हो सकता है। इसके गंभीर मामले में संक्रमण जगह पर छाले भी पड सकते हैं।
सिलिकिया का उपयोग | Use of Silicea
पैरों में होने वाले फंगल संक्रमण के लिए इस दवा का प्रयोग किया जा सकता है। इससे त्वचा पर उभरे जख्म ठीक होते हैं और दर्द से राहत मिलती है। यह संक्रमण को बढने से तत्काल रोक देता है। सिलिकिया 6X – 4 गोलियां दिन में तीन से चार बार शुरूआती अवस्था की बेहतर खुराक है।
6. बैसिलिनम (bacillinum) – दाद और टीनिया वर्सिकोलर के मामले में उपयोगी
बैसिलिनम फंगल संक्रमण के इलाज में काम आने वाली प्रमुख दवाओं में से एक है। दाद में मामले में यह दवा बेहद प्रभावी मानी जाती है। आक्रामक दाद के मामलों में यह दवा बेहद असरदार साबित होती है साथ ही बार-बार उभरने वाले संक्रमण को भी नियंत्रित करने में माहिर मानी जाती है। इसके अलावा इस दवा की मदद से टिनिया वर्सीकोलर के वैसे मामलों का भी उपचार किया जाता है जिससे त्वचा का रंग प्रभावित हो जाता है और त्वचा बदरंग पड जाती है।
बैसिलिनम का उपयोग | Use of bacillinum
सामान्यतौर पर इस दवा का उपयोग 30C पोटेंसी में करनी चाहिए। इस दवा का उपयोग इससे कम पावर में नहीं की जानी चाहिए। इस दवा का प्रयोग करते समय यह विशेषतौर पर ध्यान रखें कि इसका प्रयोग कम मात्रा में ही करें। किसी भी सूरत में 30सी पावर प्रति सप्ताह से अधिक इसका उपयोग न करें। एक खुराक लेने के बाद संक्रमित हिस्से पर नजर रखें।
7. थूजा (Thuja) – दाढ़ी और मूंछ वाले क्षेत्र में फंगल संक्रमण (टीनिया बार्बे) में फायदेमंद
थूजा आर्बर विटे पौधे से प्राप्त एक प्राकृतिक औषधि है। दाढ़ी, मूंछ और गर्दन क्षेत्र में दाद संक्रमण के मामले में यह बेहद कारगर है। संक्रमण प्रभावित हिस्से में छोटे लाल दाने या कठोर गांठें हो सकती हैं। इसे ठंडे पानी से धोने पर खुजली और जलन की समस्या और ज्यादा बढ सकती है।
थूजा का उपयोग | Use of Thuja
इसे दिन में केवल एक बार 30सी पावर की खुराक लेनी चाहिए। यदि 30C पोटेंसी के बाद स्थिति में सुधार न हो तो इसकी उच्च पोटेंसी देने के बारे में चिकित्सक सोंच सकते हैं। बिना योग्य चिकित्सक के सलाह के इस दवा का प्रयोग समस्या पैदा कर सकता है।
8. एंटीमोनियम क्रूडम (Antimonium Crudum) – नेल फंगस के लिए (ओनिकोमाइकोसिस / टीनिया अनगुइअम) के मामले में उपयोगी
नाखून में होने वाले फंगल संक्रमण के ममाले में एंटीमोनियम क्रूडम एक विशेषज्ञ दवा के रूप में जाना जाता है। यह एक शक्तिशाली दवा है। जिनके नाखून बदरंग, भंगुर हो चुके हों या हो रहे हों, उनके लिए यह दवा बेहद उपयोगी साबित होती है। संक्रमण की वजह से नाखून टूटना, विकृत हो जाना, अपने प्राकृतिक आकार से नाखून अलग होना, नाखूनों में दर्द के मामले में यह दवा काम आती है।
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एंटीमोनियम क्रूडम का उपयोग | Use of Antimonium Crudum
नाखूनों में संक्रमण के मामले में एंटीमोनियम क्रुडम का इस्तेमाल सबसे पहले किया जाता है। इससे नाखूनों की बदरंगता में सुधार होती है और नाखून मजबूत होते हैं। यह संक्रमण को धीरे-धीरे खत्म कर देता है। उपचार शुरू करने के लिए 30C शक्ति सही विकल्प है। इसे प्रतिदिन दो बार लेने की सलाह दी जाती है।
9. बोरेक्स (borax) – मुंह में फंगल संक्रमण (ओरल थ्रश) में लाभकारी
मुंह में होने वाले फंगल/यीस्ट संक्रमण के इलाज में बोरेक्स की विशेष भूमिका होती है। इस संक्रमण में मुंह और जीभ में सफेद धब्बेदार वृद्धि होने लगती है। मुंह में लालिमा के साथ कोमल परत पीडादायक हो जाते हैं। कड़वा स्वाद और शुष्क मुँह भी इसके प्रमुख लक्षण हैं।
बोरेक्स का उपयोग | Use of borax
बोरेक्स का उपयोग मुंह में सफेद और कोमल फंगल पैच होने पर किया जाता है। संक्रमण की तीव्रता और स्थिति को देखकर इस दवा की शक्ति और डोज निर्धारित की जाती है। इसका 30C पोटेंसी का डोज प्रतिदिन दो बार किया जा सकता है। वहीं, 200C पोटेंसी में, खुराक दिन में सिर्फ एक बार तक ही सीमित रखना चाहिए।
10. पल्सेटिला (Pulsatilla) – योनि में होने वाले कैंडिडिआसिस में असरदार
योनि कैंडिडिआसिस के इलाज के लिए इस दवा को प्राकृतिक औषधि के रूप में प्रसिद्धि हासिल है। योनि से गाढ़ा सफेद, दूधिया या क्रीम जैसा स्राव होने पर इस दवा का उपयोग किया जाता है। डिस्चार्ज के कारण योनि में जलन और दर्द हो सकता है। योनि में खुजली भी महसूस कर सकते हैं। मासिक धर्म के बाद स्राव की स्थिति और बिगडने लगती है।
पल्सेटिला का उपयोग | Use of Pulsatilla
सफेद रंग के योनि स्राव के साथ फंगल संक्रमण में यह दवा लाभकारी है। पल्सेटिला 30सी को दिन में दो बार और लक्षण तीव्र होने पर दिन में तीन बार दिया जा सकता है।
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