New Researches : गलत निदान के चलते यूएस में प्रतिवर्ष 7.95 लाख लोगों की होती है मौत
नई दिल्ली।टीम डिजिटल : New Researches : स्पाइन की समस्या में गलत निदान (misdiagnosis) दर 62 प्रतिशत- किसी भी रोग के उपचार के लिए उसका शीघ्र निदान होना बेहद आवश्यक है। आपके स्वस्थ होने की संभावना उचित निदान की बुनियाद पर ही टिकी होती है। रोग कुछ और है, उपचार कुछ और दिया जा रहा हो तो यह स्थिति पीडित व्यक्ति के स्वास्थ्य और उसके संसाधनों को भी प्रभावित करता है।
ताजा शोध (New Researches) में गलत निदान (misdiagnosis) को लेकर जो बाते सामने आई है, वह चौंकाने वाली है। विकसित देशों में अग्रणी देश अमेरिका की ही बात करें तो वहां प्रतिवर्ष 7.95 लाख लोगों की मौत् गलत निदान के चलते हो जाती है या फिर मरीज स्थाई तौर पर विकलांग हो जाता है। अध्ययन में यह बात भी निकलकर सामने आई है कि खासतौर से स्पाइन से संबंधित समस्याओं में गलत निदान का दर 62 प्रतिशत तक जा पहुंचा है। अध्ययनकर्ताओं ने इस हालात पर चिंता व्यक्त करते हुए इन मामलों पर गंभीरता से सोंचने की सिफारिश की है।
सही निदान और उपचार से जोखिम होंगे कम
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर कई ऐसी बीमारियां हैं, जिनका सही निदान कर जटिलताओं और जोखिमों को कम किया जा सकता है। यहां तक की कैंसर जैसी बीमारियों के मामले में उसकी गंभीरता को लेकर सही निदान न होना भी इससे होने वाली मौत का सबसे बडा कारण माना जाता है।
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गलत निदान के मामलों की लिस्ट में स्ट्रोक सबसे ऊपर
विशेषज्ञों के मुताबिक, गलत तरीके से निदान (misdiagnosis) की जाने वाली चिकित्सीय समस्याओं की सूची में स्ट्रोक (stroke) प्रथम स्थान पर है। इसके कारण कई स्थाई समस्या होती है और कुछ स्थितियों में मरीज की जान भी जा सकती है। स्ट्रोक से पीडित लगभग 4 में से 3 लोगों में दिल का दौरा, संक्रमण या कैंसर जैसी हृदय संबंधी समस्याओं का खतरा बढ सकता है।
11 प्रतिशत चिकित्सा समस्याओं के पीछे गलत निदान है जिम्मेदार
किसी भी रोग का सही निदान न हो पाना रोगी के लिए बडी समस्याएं पैदा कर सकती है। इस तथ्य को कसौटी पर कसने के लिए स्वास्थ्य विशेषज्ञों की टीम ने इस विषय पर अध्ययन (New Researches) किया। शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि 11% चिकित्सा समस्याएं, गलत निदान के कारण प्रभावित करती है। हालांकि रोग के आधार पर इसकी व्यापकता भिन्न हो सकती है। अध्ययन में यह पाया गया कि दिल के दौरे के मामले में गलत निदान दर केवल 1.5 प्रतिशत है। जबकि, रीढ़ की हड्डी की समस्या में गलत निदान का जोखिम 62 प्रतिशत तक हो सकता है।
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अध्ययन में हुए और कई खुलासे
बीएमजे क्वालिटी एंड सेफ्टी जर्नल में प्रकाशित संबंधित अध्ययन (New Researches) की रिपोर्ट में गलत निदान को लेकर और भी तथ्य उजागर किए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह विषय रोगी और चिकित्सक दोनों के लिए विचार करने योग्य है। सेंटर फॉर डायग्नोस्टिक एक्सीलेंस के निदेशक और शोधकर्ता डेविड न्यूमैन-टोकर के मुताबिक, स्ट्रोक, सेप्सिस, निमोनिया और फेफड़ों के कैंसर के लिए नैदानिक त्रुटियों के ममाले अगर 50 प्रतिशत तक भी कम किए जाएं तो कई मरीजों को स्थाई विकलांगता और मृत्यु से बचाया जा सकता है। इस दर में प्रतिवर्ष 1.50 लाख तक की कमी आ सकती है।
विशेषज्ञों ने सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट करार दिया
विशेषज्ञों के मुताबिक रोगों के गलत निदान (misdiagnosis) से संबंधित यह रिपोर्ट सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट की ओर इशारा करता है। स्ट्रोक के रोगियों में समय रहते समस्या का निदान नहीं होने के मामले सबसे अधिक पाया जाना चिंता का विषय है। प्रोफेसर न्यूमैन-टोकर के मुताबिक, नैदानिक त्रुटियां हमारे सामने सबसे कम संसाधन वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है। इस मामले में केवल चिकित्सक ही नहीं बल्कि रोगियों को भी जागरूक रहना होगा। उन्हें अपने लक्षणों पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। ऐसा कर वह खुद की ही मदद कर करते हैं।
New Researches : स्पाइन की समस्या में गलत निदान दर 62 प्रतिशत
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