शनिवार, जुलाई 19, 2025
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Pollution से बचाव के साथ फेफड़ों की कार्य क्षमता बढाते हैं यह 11 उपाए

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Pollution की वजह से अस्थमा, सीओपीडी और एलर्जी के बढ रहे हैं मरीज

Pollution : मौसम बदलने के साथ ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण (Air Pollution) का स्तर बढ़ने से लोगों को सांस लेने में परेशानी शुरू हो गई है। दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता यानी एयर क्वालिटी ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंचने की आशंका के बीच कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट ने द्वितीय ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान यानी ‌‌ग्रेप 2 लागू कर दिया है। अस्थमा, सी.ओ.पी.डी.,और एलर्जी जैसे रोगों के मरीजों की संख्या में एकदम से बढ़ोतरी हो गई है।

कोरोना के बाद वैसे भी लोगों के दिल और फेफड़ों की कार्य क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई है। प्रदूषण (Pollution) नियंत्रण की जिम्मेवारी सरकार के साथ-साथ नागरिकों की भी है। साधारण उपायों, घरेलू नुस्खों व आयुर्वेदिक चिकित्सा के प्रयोग से न केवल फेफड़ों की कार्य क्षमता में सुधार किया जा सकता है बल्कि प्रदूषण से शरीर पर होने वाले नुकसान को भी काफी सीमा तक कम किया जा सकता है। योग, प्राणायाम, आयुर्वेदिक दवाओं तथा पंचकर्म चिकित्सा से प्रदूषण से शरीर में होने वाले दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।

आयुर्वेद के इन 11 उपायों से हो सकता है Air Pollution से बचाव

Pollution से बचाव के साथ फेफड़ों की कार्य क्षमता बढाते हैं यह 11 उपाए
Pollution से बचाव के साथ फेफड़ों की कार्य क्षमता बढाते हैं यह 11 उपाए | Photo : freepik

 

1. मास्क

कोरोना महामारी के दौरान मास्क की उपयोगिता सिद्ध हो चुकी है । प्रदूषित वायु (Air Pollution) को शरीर में जाने से रोकने हेतु घर से बाहर मास्क का प्रयोग नियमित रूप से करें ताकि 2.5 माइक्रोन से छोटे कण भी शरीर में प्रवेश न कर पाएं। यदि प्रदूषण के कण श्वसन तंत्र व शरीर में प्रवेश कर भी गए हैं तो जलनेति व स्वेदन की सहायता से उन कणों को शरीर से बाहर निकाला जा सकता है।

2. नस्य कर्म

नस्य कर्म के अंतर्गत सरसों या तिल का तेल नाक में लगा लिया जाता है जिससे धूल के कण नाक में ही चिपके रह जाएं और आगे श्वसन तंत्र में नहीं पहुंच पाते । षडबिंदु जैसे औषधि युक्त तेलों का प्रयोग भी नस्य कर्म हेतु किया जा सकता है

3. जलनेति

जलनेति के अंतर्गत एक टोंटी लगे लोटे के द्वारा गरम पानी को नाक के एक नथुने में डालकर दूसरे से निकाला जाता है, दूसरे में डालकर पहले से निकाला जाता है और नाक में डालकर मुंह से निकाला जाता है। इससे नाक व श्वास पथ में चिपके कण बाहर निकल जाते हैं और आगे फेफड़ों व श्वसन तंत्र में नहीं पहुंच पाते।

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4. स्वेदन

स्वेदन प्रक्रिया के अंतर्गत गर्म पानी, गर्म दूध या गर्म चाय पीकर व मोटा कपड़ा ओढ़ कर पसीना लेने से फेफड़ों तथा शरीर के अन्य अंगों में पहुंचे प्रदूषण (Pollution) के कण श्वसन तंत्र में सूजन पैदा नहीं कर पाते । पसीना आने से फेफड़ों में चिपका हुआ बलगम पिघल जाता है जिससे बलगम के साथ ही धूल के कण भी शरीर से बाहर निकल जाते हैं।

5. वाष्पीकरण

यदि सुबह शाम घर के अंदर दरवाजे के पास 2 -3 लीटर पानी खुले में उबाला जाए तो धूल व प्रदूषण (Pollution) के अधिकांश कण वाष्प के साथ नीचे बैठ जाएंगे जिससे घर की हवा का प्रदूषण समाप्त हो जाएगा और हवा साफ हो जाएगी। घर के बाहर भी आसपास पानी का छिड़काव करें ताकि धूल के कण बैठ जाएं।

6. Pollution के दुष्प्रभाव को रोकने और शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने वाली जड़ी बूटियां व औषधियां

हल्दी, तुलसी, अडूसा, जूफा, अदरक, दालचीनी आदि दूध या चाय में उबालकर या काढ़ा बनाकर पीने से गले की खराश और सूजन ठीक हो जाती है तथा प्रदूषित कण शरीर से बाहर निकल जाते हैं। दूध में खजूर, छोटी पीपल, मुनक्का और सौंठ उबालकर पीने से शरीर की इम्यूनिटी बढेगी और फेफड़ों की कार्य क्षमता में सुधार होगा ।

औषधियों में सितोपलादि चूर्ण, तालीसादि चूर्ण, टंकण भस्म, लक्ष्मी विलास रस, चंद्र अमृत रस, चित्रक हरीतकी, अगस्त्य हरीतकी, वासावलेह व तुलसी, हल्दी, वसाका, भृंगराज, कुटकी, कासनी आदि औषधियों का प्रयोग लाभदायक रहता है। यदि रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो रही हो तो स्वर्ण समीर पन्नग रस व त्रैलोक्य चिंतामणि रस फायदा पहुंचाता है।

7. रस या तेल का प्रयोग

प्रदूषण के कारण नाक व श्वसन पथ में हुई सूजन को खत्म करने और संक्रमण से बचाव के लिए पुदीना, यूकेलिप्टस व यष्टिमधु के रस या तेल के अलावा षडबिंदु तेल की दो-दो बूंदें नाक में दिन में दो-तीन बार डाल सकते हैं।

8. पथ्य – अपथ्य

चावल, दही, कढ़ी, गोभी, मटर, उड़द की दाल, आइसक्रीम, जैसी ठंडी तासीर की चीज़ों का परहेज करना चाहिए । खाने में घीया, तोरी, टिंडा,पालक, बथुआ, सरसों जैसी हरी सब्जियां तथा मूंग, चने व मसूर की दाल का प्रयोग करें । टमाटर, पालक व हरी सब्जियों का सूप दिन में दो तीन बार लें और बाजरा, ज्वार जैसी गर्म तासीर वाले मोटे अनाज भोजन में शामिल करें।

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9. मसालों का प्रयोग

शरीर में रोग तभी उत्पन्न होते हैं जब शरीर के दोष बाहर ना निकल पाएं। दोषों के निष्कासन के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति को कब्ज की शिकायत न रहे ताकि शरीर के दोष मल के साथ बाहर निकलते रहें। भोजन के सुचारू रूप से पाचन के लिए खाने में इलायची, सौंफ, धनिया, दालचीनी, मेथी, अजवाइन, जीरा, हल्दी आदि मसालों का प्रयोग नियमित रूप से करना चाहिए। यदि कब्ज हो जाए तो एरंड के तेल (कैस्टर ऑयल) का प्रयोग रात में सोते समय दूध के साथ करें ।

10. आहार विहार

एयर कंडीशनर का प्रयोग बिल्कुल बंद कर दें और पंखे की स्पीड भी कम रखें। रात के समय विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है क्योंकि दिन और रात के तापमान में काफी अंतर है ।

11. कुंभक

कुंभक (फेफड़ों में पूरी सांस भरकर अधिक से अधिक समय तक रोकने) की प्रैक्टिस सुबह शाम नियमित रूप से करें ताकि फेफड़े मजबूत हों और उनका लचीलापन बना रहे। प्राणायाम, अनुलोम -विलोम, धनुषासन, चक्रासन, भुजंगासन और हलासन भी फेफड़ों की मजबूती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके नियमित अभ्यास से अस्थमा, एलर्जी, ब्रोंकाइटिस व सी.ओ.पी.डी. जैसे रोगों से बचा जा सकता है।

अस्वीकरण (Disclaimer)


नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

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Dr. RP Parasher
Dr. RP Parasherhttps://caasindia.in
Dr. R. P. Parasher is a distinguished Clinical Psychologist and renowned Ayurveda Specialist, currently serving as the Chief Medical Officer (Ayurveda) at the Municipal Corporation of Delhi. With decades of experience in holistic healing, Dr. Parasher is widely recognized for his expertise in Ayurvedic medicine and his deep commitment to patient care. He holds a special interest in lifestyle disorders, autoimmune conditions, and the treatment of rare and chronic diseases through integrative Ayurvedic approaches. His evidence-based practice and compassionate approach have earned him a respected name in the field of traditional Indian medicine.
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