एम्स विशेषज्ञों ने क्लीनिकल ट्रायल में पाया उपयोगी
Delhi Aiims : दिल्ली एम्स के विशेषज्ञों ने अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative Colitis) को लेकर एक क्लीनिकल ट्रायल को अंजाम दिया है। जिसमें कुछ उपयोगी जानकारी सामने आई है।
अल्सरेटिव कोलाइटिस एक ऑटोइम्यून बीमारी (Autoimmune Disease) है। आंतों में होने वाली इस बीमारी का कोई प्रभावी उपचार उपलब्ध नहीं है लेकिन इसके लक्षणों को नियंत्रित कर मरीजों को राहत दी जा सकती है।
दिल्ली एम्स ( DELHI AIIMS) में किए गए क्लीनिकल ट्रायल में यह पाया गया है कि नारियल पानी (Coconut Water) इसके उपचार में काफी मददगार साबित हो सकता है। दवा के साथ अगर मरीज को प्रतिदिन नारियल पानी दिया जाए तो इससे मरीजों को काफी राहत मिलती है। एम्स के इस शोध को अमेरिका के क्लीनिकल गैस्ट्रोइंटेरोलाजी एवं हेपेटोलाजी जर्नल (Journal of Clinical Gastroenterology and Hepatology) में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया है।
Delhi Aiims और ICMR ने मिलकर किया ट्रायल
इस शोध को दिल्ली एम्स और आर्ईसीएमआर ने साथ मिलकर किया है। जिसमें अल्सरेटिव कोलाइटिस के मध्यम स्तर के गंभीर और हल्के लक्षण वाले मरीजों को शामिल किया गया था।
ट्रायल में 121 मरीजों को किया गया शामिल
दिल्ली एम्स (Delhi Aiims) में विशेषज्ञों ने इस ट्रायल में 121 मरीजों को शामिल किया। इन्हें दो वर्गों में बांटा गया। इस ट्रायल में करीब 54 पुरुष और 46 प्रतिशत महिला मरीजों को शामिल किया गया। मरीजों की औसत उम्र 37 वर्ष थी। मरीज दो से साढ़े सात वर्ष से अल्सरेटिव कोलाइटिस की बीमारी से पीडित थे।
एम्स के गैस्ट्रोलाजी विभाग (Gastrology department of AIIMS) के प्रोफेसर डॉ. विनीत आहूजा (Dr Vineet Ahuja) के मुताबिक इस क्लीनिकल ट्रायल (clinical trial) में शामिल आधे मरीजों को अल्सरेटिव कोलाइटिस के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं के साथ प्रतिदिन 400 मिली. नारियल पानी पिलाया गया। आठ हफ्ते तक मरीजों को दवाइयों साथ नारियल पानी भी दिए गए।
जबकि, दूसरे समूह के मरीजों को दवाओं के साथ बोतल बंद फ्लेवर युक्त पानी दिया गया। इस ट्रायल में नारियल पानी का इस्तेमाल करने वाले 57.1 प्रतिशत मरीजों पर उपचार का असर बेहतर पाया गया। वहीं, दूसरे समूह के सिर्फ 28.3 प्रतिशत मरीजों पर ही इलाज का असर बेहतर पाया गया।
दूसरे समूह के मरीजों को नारियल पानी नहीं दिया गया था। नारियल पानी का इस्तेमाल करने वाले 53.1 प्रतिशत मरीजों के लक्षणों में सुधार पाया गया। वहीं, दूसरे समूह के महज 28.3 प्रतिशत मरीजों के लक्षणों में ही सुधार नजर आया।
इस परीक्षण में यह भी खुलासा हुआ है कि नारियल पानी के इस्तेमाल से मरीजों के शरीर में मौजूद गट माइक्रोबायोम (आंत में मौजूद रहने वाले बैक्टीरिया) में भी बदलाव होता है। इसलिए अल्सरेटिव कोलाइटिस के इलाज में दवा के साथ नारियल पानी का इस्तेमाल दिल्ली एम्स के विशेषज्ञों ने काफी फायदेमंद बताया है।
क्या है Ulcerative Colitis
अल्सरेटिव कोलाइटिस आंतों में सूजन पैदा करने वाली बीमारी है। यह एक ऑटोइम्यून श्रेणी की बीमारी है। अल्सरेटिव कोलाइटिस से पीडित मरीजों की आंत में सूजन के साथ अल्सर भी हो सकते हैं। ऐसे मरीजों में एक सामान्य व्यक्ति के मुकाबले आंतों में कैंसर का जोखिम अधिक होता है।
इस बीमारी में पेट दर्द, दस्त के साथ खून आने के लक्षण प्रकट हो सकते हैं। इसके साथ ही कई मरीजों में लो ग्रेडर् फीवर भी पाया जा सकता है। खास बात यह है कि इसके मरीजों में वजन भी कम होना एक प्रमुख लक्षण के तौर पर उभर सकता है। डॉ. आहूजा के मुताबिक यह एक लाइलाज बीमारी है।
इस बीमारी के लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए इम्यूनिटी को नियंत्रित करने वाली दवाइयां दी जाती है। वर्तमान में इस बीमारी को प्रबंधित करने के लिए सबसे उन्नत दवाइयों में बॉयोलॉजिक्स (Biologics) है। डॉक्टर के मुताबिक नारियल पानी में पोटैशियम की मात्रा होती है। पोटैशियम एंटी इफ्लेमेट्री प्रोपर्टी (Anti inflammatory property) वाला पोषक तत्व है।
यहां बता दें कि एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (Ankylosing Spondylitis) जैसे ऑटोइम्यून रूमेटिक डिसऑर्डर (autoimmune rheumatic disorder) वाले मरीजों में अल्सरेटिव कोलाइटिस होने का उच्च जोखिम होता है। Ankylosing Spondylitis वाले मरीजों को अपने गट हेल्थ का विशेषतौर पर ध्यान रखना चाहिए।
उन्हें ऐसे खाद्य पदार्थ को आहार में शामिल करने से बचना चाहिए, जिससे अल्सरेटिव कोलाइटिस विकसित होने का खतरा हो। ऐसे मरीजों को समय-समय पर अपने आंतों से संबंधित जांच करवाना चाहिए। जिन मरीजों में अल्सरेटिव कोलाइटिस हो उन्हें साल में कम से कम एक बार अपनी आंतों की जांच जरूर करवानी चाहिए। शुरूआती अवस्था में अगर अल्सरेटिव कोलाइटिस का उपचार शुरू कर दिया जाए तो इसके बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।