Delhi (दिल्ली) News : प्रेगनेंट(pregnant) होने के कारण बेहद जटिल थी सर्जरी की प्रक्रिया
Patient Recovery : दिल्ली (Delhi) के फोर्टिस अस्पताल (Fortis Hospital) के डॉक्टरों ने स्पाइन टीबी (spine TB) और लकवाग्रस्त (paralysis) एक गर्भवती महिला की जटिल सर्जरी (complex surgery of pregnant woman) कर उसे दोबारा अपने पैरों पर खडा कर दिया। गर्भवती होने की वजह से महिला की सर्जरी बेहद जटिल थी।
जिस तरह इन मामलों में स्पाइन फिक्सेशन सर्जरी (spine fixation surgery) की जाती है, वैसे परंपरागत तरीके से सर्जरी करना बेहद जटिल और जोखिम भरा साबित हो रहा था लेकिन सर्जरी टीम ने अपनी कार्यकुशलता का परिचय देते हुए इस चुनौतीपूर्ण सर्जरी को सफल बना दिया। नतीजतन, महिला दोबारा न केवल अपने पैरों पर खडी हो सकी (Patient Recovery) बल्कि एक स्वस्थ्य शिशु को भी जन्म दिया।
Patient Recovery : सात महीने से थी लकवाग्रस्त थी गर्भवती महिला
दिल्ली के शालीमार बाग स्थित फोर्टिस अस्पताल (Fortis Hospital, Shalimar Bagh, Delhi) में 28 वर्षीय एक गर्भवती महिला का मामला आया था। मरीज स्पाइनल ट्यूबरक्लोसिस (Spinal TB) से पीडित होने के साथ 7 महीने से पैरालिसिस (Paralysis) से पीड़ित थी। डॉक्टरों के मुताबिक, यह मामला बेहद चुनौतीपूर्ण और दुर्लभ (rare case) किस्म का था। गर्भवती मरीज चार महीनों से पीठ दर्द की समस्या से परेशान थीं। शुरू में ऐसा लगा कि पीठ दर्द उसके प्रेगनेन्सी की वजह से है।
कई बार ऐसी अवस्था में पीठ दर्द उभर सकता है। जिसके कारण इस समस्या पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। गर्भधारण के छठे महीने हो जाने के बाद भी जब उसकी तकलीफ कम नहीं और अब पैरों में भी कमजोरी (weakness in legs) महसूस होने लगी।
अगले 20 दिनों में महिला के दोनों पैर पूरी तरह से लकवाग्रस्त हो गए और उनकी मूवमेंट पूरी तरह प्रभावित हो गई। मरीज की हालत इस कदर बिगड़ती चली गई कि वे पेशाब भी नहीं कर पा रही थी। जिसके कारण उन्हें कैथेटर लगाना पडा। इस स्थिति में पहुंचने के बाद मरीज को फोर्टिस अस्पताल लाया गया। डॉक्टरों ने जब उनकी जांच की तो पाया कि गर्भवती महिला स्पाइनल स्पाइनल टीबी से पीडित (Pregnant woman suffering from spinal TB) है। इन तमाम परिस्थितियों का सामना करते हुए महिला ने सी-सेक्शन सर्जरी (C-section surgery) के जरिए एक स्वस्थ शिशु को जन्म दिया।
Spine TB की वजह से हो रहा था स्पाइनल कंप्रेशन
न्यूरोसर्जरी विभाग की डायरेक्टर डॉक्टर सोनल गुप्ता (Director of Neurosurgery Department, Dr. Sonal Gupta) के मुताबिक एमआरआई रिपोर्ट के बाद ने स्पाइनल फिक्सेशन करने का निर्णय लिया। रीढ की हड्डी में दबाव (spinal pressure) को कम करने के लिए मरीज का तत्काल सर्जरी करना जरूरी था लेकिन मरीज की प्रेगनेंसी के चलते यह सर्जरी काफी जटिल थी।
डॉक्टरों ने सर्जरी के दौरान उन्हें इस तरह से लेटाया, जिससे सर्जरी के दौरान गर्भ में पल रहे भ्रूण पर किसी तरह का प्रभाव न पडे। इस सर्जरी में सर्जन ने पारंपरिक स्पाइनल फिक्सेशन तकनीक (Traditional spinal fixation technique) का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे।
जबकि, प्रेगनेंसी की वजह से मरीज का एक्स-रे भी करना संभव नहीं था। स्पाइन को स्टेबिलिटी (spine stability) प्रदान करने के लिए सर्जरी के दौरान रीढ़ में स्क्रू (inter vertebral titanium cage) फिट करने में एक्स-रे की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। ऐसे में सर्जन्स ने एक अस्थायी वायर फिक्स किया। सर्जरी के दौरान एनेस्थीसिया भी सावधानीपूर्वक दिया। ताकि, इन सब के प्रभाव से मां और शिशु को सुरक्षित रखा जा सके।
प्रसव के बाद एक और सर्जरी
प्रसव के 15 दिनों के बाद मरीज की एमआरआई जांच से पता चला कि रीढ़ में सूजन (swelling in spine) है। साथ ही रीढ़ के अस्थिर होकर कॉलेप्स करने की वजह से कम्प्रेशन (Compression due to instability of the spine and collapse) भी है।
इस समस्या को दूर करने के लिए एक और सर्जरी की गई और इस बार ट्यूबरक्लोसिस से प्रभावित टिश्यू (Tissues affected by tuberculosis) को हटाने तथा रीढ़ की स्थिरता देने के लिए उनके फेफड़े के साइड से यह सर्जरी (Surgery from the side of his lung to provide stability to his spine.) करनी पडी। जिसमें वर्टिब्रल गैप (vertebral gap) को भरने के लिए एक केज और स्क्रू (Cage and Screw) लगाए गए।
सर्जरी के तीन महीने बाद पैरों पर चल पाई मरीज
सर्जरी के तीन माह बाद भी जब मरीज के पैर में कोई हरकत नहीं हुई तो एक और एमआरआई जांच की गई। इसमें पता चला कि स्पाइन में अब भी सूजन है। इतनी चुनौतियों का सामना करने के बाद भी मरीज और उनके पति ने हिम्मत नहीं खोयी और लगातार इलाज को लेकर आशावान बने रहे।
उन्होंने नियमित फिजियोथेरेपी के साथ स्पाइनल ट्यूबरक्लोसिस का उपचार (Treatment of spinal tuberculosis) जारी रखा। उनकी यह दृढ़ता और संकल्पशक्ति रंग लायी और धीरे-धीरे मरीज की हालत में सुधार आने लगा। ट्यूबरक्लोसिस का इलाज शुरू होने के 9 महीनों के बाद मरीज ने दोबारा चलना शुरू कर दिया। करीब 18 महीने लंबे उपचार के बाद मरीज की मूवमेंट (Patient Recovery) पूरी तरह लौट आई है।
“यह मेडिकल इतिहास में अपनी तरह का बेहद दुर्लभ मामला (very rare case in medical history) था, जिसमें लकवाग्रस्त मरीज को 7 महीने तक इलाज पर रखने के बावजूद उनके पैरों में कोई हरकत नहीं हुई थी। प्रेगनेंसी में स्पाइनल ट्यूबरक्लोसिस भी काफी दुर्लभ मामला (Spinal tuberculosis during pregnancy is also a very rare case) है लेकिन लगभग 7 महीने तक पूरी तरह लकवाग्रस्त रहने के बाद अब मरीज ने आखिरकार पूरी मोबिलिटी हासिल कर ली है, जो कि न सिर्फ दुर्लभ है बल्कि किसी चमत्कार से कम नहीं है।”– डॉक्टर सोनल गुप्ता, निदेशक और एचओडी, न्यूरोसर्जरी विभाग, फोर्टिस अस्पताल, शालीमारबाग
ऐसे मामलों में रिकवरी की उम्मीद होती है कम
फैसिलिटी डायरेक्टर दीपक नारंग के मुताबिक “यह मेडिकल एक्सीलेंस का ऐसा मामला (case of medical excellence) है, जिसने मरीज को ऐसे हालात में राहत दिलायी, जिसमें आमतौर से रिकवरी मुमकिन नहीं होती। इस मामले में इलाज के लिए मल्टी-डिसीप्लीनरी टीम ने मिलकर काफी सोच-समझ से काम लिया और मरीज की नाजुक हालत देखते हुए उपचार किया।
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तमाम चुनौतियों के बावजूद मरीज की स्थिति का सही मूल्यांकन किया गया। जिसकी वजह से मरीज का सफल उपचार मुमकिन हो पाया। सर्जरी करने वाली टीम में डॉ. सोनल गुप्ता के साथ आब्सटैट्रिक्स एवं गाइनीकोलॉजी विभाग की डायरेक्टर डॉ. सुनीता वर्मा, डॉ. प्रदीप कुमार जैन और डॉ. उमेश देशमुख भी महत्वपूर्ण रूप से शामिल रहे।