एब्रिन (abrin) बना एक बच्चे की मौत का कारण दूसरे को डॉक्टर ने बचाया
नई दिल्ली। टीम डिजिटल :
एक खतरनाक पौधे (Abrus pretorius plant) में सांप के समान ही तेज जहर होता है। इस पौधे के बीज को खेल-खेल में ही दो भाईयों ने खा लिया। इससे पहले कोई कुछ समझ पाता एक मासूम की जान चली गई तो दूसरे को गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया। जहां काफी मशक्कत के बाद डॉक्टर बच्चे की जान बचाने में कामयाब रहे।
गंगाराम अस्पताल में आया यह हैरतअंगेज मामला
![Abrus pretorius plant : खतरनाक पौधे ने ले ली मासूम की जान 1 Abrus pretorius plant : खतरनाक पौधे ने ले ली मासूम की जान](https://caasindia.in/wp-content/uploads/2022/11/doctors-pushing-emergency-scaled-e1669734134185.jpg)
दरअसल, यह घटना मध्य प्रदेश के भींड जिले से सामने आई है। दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल (sir ganga ram hospital) के बाल चिकित्सा आपातकालीन और क्रिटिकल केयर विभाग में बीते 31 अक्टूबर को एक सात वर्षीय बच्चे आरके को गंभीर हालत में लाया गया। इमरजेंसी में लाया गया बच्चा खूनी दस्त, दिमाग में सूजन और शॉक समेत एब्रिन (abrin) जहर के लक्षण दिख रहे थे।
जब हमने बच्चे को भर्ती किया तो मैं यह जान कर हैरान रह गया कि बच्चे को एब्रिन नाम का जहर दिया गया है। डॉक्टर के मुताबिक बच्चा बेसुध और चिड़चिड़ा था। एन्सेफैलोपैथी (मस्तिष्क में सूजन) और अस्थिर विटाल (शॉक के साथ हाई पल्स रेट) से पीड़ित था। हमारे सामने चुनौती यह थी कि बच्चा जहर से प्रभावित होने के 24 घंटे के बाद हमारे लाया गया। बचाव के लिए निर्धारित गोल्डन आवर की अवधि खत्म हो गर्ई थी और जहर के एंटिडॉट की अनउपलब्धता भी हमारे सामने बहुत बडी चुनौती बनी हुई थी। इस तरह के ज़हर वाले मामल में, आदर्श उपचार और चारकोल थेरेपी करके पेट की सफाई जहर से प्रभावित होने के दो घंटों के भीतर ही करना होता है।
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पौधे में भी होता है यह जहर
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एब्रिन (abrin) जहर एब्रस प्रीटोरियस पौधे (Abrus pretorius plant) के बीज से भी निकलता है। भारत में यह पौधा रत्ती या गुंची के नाम से जाना जाता है। इसका जहर सांप के विष जितना ही खतरनाक और घातक होता है। समय पर इलाज न मिलने से इस जहर से प्रभावित व्यक्ति की मौत का उच्च जोखिम रहता है। एब्रिन वाइपर सांप (viper snake) में पाए जाने वाले जहर की तरह होता है। एब्रिन किसी व्यक्ति के शरीर की कोशिकाओं के अंदर जाकर घातक समस्या पैदा करता है। यह जहर शरीर की कोशिकाओं को उनकी जरूरत का प्रोटीन बनाने से रोकता है। प्रोटीन के बिना कोशिकाएं मर जाती हैं। अंत में यह पूरे शरीर में फैलकर हानि पहुंचाता है। नतीजतन, जहर से प्रभावित व्यक्ति की मौत हो जाती है।
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एब्रिन का नहीं है एंटीडोज :
एक कहावत है कि जहर ही जहर की दवा बनता है लेकिन एब्रिन के मामले में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण सच यह है कि इसका एंटीडोज उपलब्ध ही नहीं है। ऐसे में इससे प्रभावित लोगों को एब्रिन के संपर्क से बचाना या अन्य उपायों द्वारा शरीर में इसके प्रभाव को शीघ्रता से कम करना ही एकमात्र विकल्प है। यदि, कोई व्यक्ति गलती से इस जहर से प्रभावित हो जाए तो एब्रिन को जल्द से जल्द शरीर से बाहर निकाल देना चाहिए। अस्पतालों में, जहर के प्रभाव को कम करने के लिए पीड़ितों को सहायक चिकित्सा देखभाल देकर एब्रिन विषाक्तता का इलाज किया जाता है।
सहायक चिकित्सा देखभाल के प्रकार कई कारकों पर निर्भर करते हैं, जैसे कि जिस मार्ग ( सांस, निगलने, त्वचा या आंखों के संपर्क में आने) से पीड़ित को जहर दिया गया हो, देखभाल में पीड़ितों को सांस लेने में मदद करना, उन्हें इंटरवेनस तरल पदार्थ (एक नस में डाली गई सुई के माध्यम से दिया जाने वाला तरल पदार्थ) देना, रिकवरी और निम्न रक्तचाप जैसी स्थितियों के इलाज के लिए दवाएं देना, सक्रिय चारकोल देना (यदि एब्रिन को हाल ही में निगला गया हो) और आंखों को धोने के साथ पेट की सफाई करना शामिल है।
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प्रजेंस ऑफ माइंड का इस्तेमाल कर बच्चे के जीवन की हुई रक्षा
डॉक्टर के मुताबिक जहर से प्रभावित बच्चे को बचाने के न्यूनतूम विकल्प होने के बावजूद हमने प्रजेंस ऑफ माइंड का इस्तेमाल किया और तत्काल जहर को प्रभावहीन करने में सफल हो गए और इस तरह मौत के मुंह में जा चुके बच्चे के जीवन की रक्षा करने में कामयाब रहे। अस्पताल में भर्ती होने के चौथे दिन बच्चे को स्थिर हालत के साथ छुट्टी दे दी गई।
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बच्चे के भाई को नहीं बचा सके डॉक्टर
सर गंगा राम अस्पताल पहुंचने से पहले, आरके का 5 साल का छोटा भाई, जिसने उन्हीं बीजों का सेवन किया था, उसकी हालत बेहद गंभीर हो चुकी थी। जहर के प्रभाव के कारण उसे दौरे पड़ गए और वह कोमा में चला गया। 24 घंटे में पांच वर्षीय बच्चे की मौत हो गई।
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