लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में आयोजित किया गया जागरुकता कार्यक्रम
Ankylosing Spondylitis मरीजों को स्वास्थ्य बीमा (health insurance) नहीं दिए जाने का प्रावधान उनके लिए परेशानी का सबसे बडा सबब बना हुआ है। इस बीमारी का कोई प्रभावी उपचार नहीं है। वहीं, इसे प्रबंधित करने के लिए उपलब्ध दवाएं और उपचार बेहद महंगी है। जिसके कारण ज्यादातर मरीजों की पहुंच से आधुनिक उपचार दूर है। उपचार महंगा होने की वजह से मरीजों को आर्थिक लाचारी के कारण अपना उपचार बंद करना पडता है। जिससे मरीजों के जीवन की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।
लंबे समय से उठ रही Health Insurance की मांग
Ankylosing Spondylitis मरीज लंबे समय से स्वास्थ्य बीमा का कवच देने की मांग कर रहे हैं। वर्ष 2018 में इस आशय में प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखा जा चुका है लेकिन यह मामला अभी तक लंबित है। यहां बता दें कि यह बीमारी ज्यादातर 15 से 40 वर्ष की पुरुष युवा आबादी को ही विशेषतौर से प्रभावित करता है।
उपचार के अभाव में इस बीमारी से अप्राकृतिक दिव्यांगता (Unnatural disability) को बढावा मिल रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इस बीमारी के मरीजों को स्वास्थ्य बीमा की सुविधा दे दी जाए, तो इनका नियमित उपचार सुनिश्चित हो जाएगा और दिव्यांगता की स्थिति से मरीजों को बचाया जा सकेगा। लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के चिकित्सा निदेशक डॉ. सुभाष गिरी ने कहा कि ऐसे कार्यक्रम लगातार किए जाने की जरूरत है। जिससे Ankylosing Spondylitis के बारे में सामाजिक स्तर पर जागरुकता फैलाने में मदद मिलेगी।
जागरुकता है बहुत जरूरी
![Ankylosing Spondylitis मरीजों के स्वास्थ्य बीमा पर छिडी नई बहस 1 Ankylosing Spondylitis मरीजों के स्वास्थ्य बीमा पर छिडी नई बहस](https://www.caasindia.in/wp-content/uploads/2024/01/lhmc-16-1280x674.jpg)
लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज (Lady Harding Medical College) के मेडिसिन विभाग प्रमुख प्रो. एलएच घोटकर ने कहा कि इस बीमारी के प्रति जागरुकता फैलाने की बहुत जरूरत है क्योंकि सामाजिक स्तर पर इस बीमारी की जानकारी लोगों में नहीं है। उन्होंने कहा कि देश में इस बीमारी से पीडित कितने मरीज हैं, इनका आंकडा भी अभी उपलब्ध नहीं है। प्रो. घोटकर के मुताबिक यह अनुमान है कि देश में इस बीमारी से पीडित मरीजों की तादाद 4 से 7 प्रतिशत तक हो सकती है।
प्रोफेसर घोटकर ने कहा कि यह बीमारी अनुवांशिक भी है अगर किसी को Ankylosing Spondylitis है और उनके दो बच्चे हैं, तो दो में से एक बच्चे को इस बीमारी से पीडित होने का जोखिम हो सकता है। उन्होंने कहा कि एएस के मार्कर के रूप में HLA-B27 जीन को पहचाना गया है लेकिन जरूरी नहीं है कि इस जीन वाले सभी व्यक्ति एएस से पीडित हों। उन्होंने कहा कि यह रोग क्यों होता है, इसके कारण अभी अज्ञात हैं।
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एम्स (Delhi Aiims) के रूमेटोलॉजी विभाग के एसोशिएट प्रो. रंजन गुप्ता ने अपने प्रजेंटेशन के जरिए इस रोग के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। प्रो. गुप्ता ने कहा कि इस रोग में होने वाले ज्वाइंट फ्यूजन की समस्या को वर्तमान दौर में उपलब्ध बायोलॉजिक्स से धीमा तो किया जा सकता है लेकिन इन्हें रोकने के लिए किसी तरह का प्रभावी उपचार अभी तक उपलब्ध नहीं है। हालांकि, उन्होंने उम्मीद जताई है कि चिकित्सा विज्ञान इस बीमारी के प्रभाव को रोकने के लिए लगातार प्रयत्नशील है और आने वाले समय में इसके प्रभावी उपचार के भी ढूंढ लिए जाने की संभावना है।
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Ankylosing Spondylitis मरीजों के लिए संजीवनी का काम कर सकती है स्वास्थ्य बीमा
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caas india Foundation के संस्थापक अध्यक्ष अंकुर शुक्ला ने कहा कि एएस मरीजों के लिए स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराया जाना चाहिए। यह कदम उनके लिए संजीवनी की तरह काम करेगा। जरूरत के मुताबिक मरीजों का उपचार कराया जा सकेगा और आर्थिक कमजोरी के कारण मरीजों का उपचार बाधित नहीं होगा। ऐसे मरीजों को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाए जाने से उनके जीवन की गुणवत्ता बेहतर होगी और मरीज अप्राकृतिक दिव्यांगता से बच सकेगा। उन्होंने कहा कि दिव्यांगता देश के इकोनॉमी पर भी अतिरिक्त बोझ डालने वाली समस्या है। एएस मरीजों को दिव्यांगता से बचाने की पहल देश हित में साबित होगी।
एडवांस स्टैज में समय रहते करें सर्जरी का निर्णय : डॉ. गौरव शर्मा
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स्वामी दयांनद अस्पताल के ऑर्थोपेडिक विभाग के वरिष्ठ सर्जन डॉ. गौरव शर्मा ने एडवांस स्टेज के मरीजों में सर्जरी और इससे उनके जीवन पर पडने वाले प्रभाव पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अक्सर मरीज सर्जरी के बारे में निर्णय लेने में देर कर देते हैं। उन्होंने कहा कि एडवांस स्टेज में पहुंचने के बाद मरीज के पास एकमात्र विकल्प सर्जरी का बचता है। जिसकी मदद से वह दर्द रहित जिंदगी जी सकते हैं और अपने जीवन की गुणवत्ता को बढा सकते हैं। उन्होंने कहा कि समय से सर्जरी का निर्णय लेकर मरीज सर्जरी की सफलता के दर को भी प्रभावित कर सकते हैं।
अगर सर्जरी में काफी देर हो गई हो तो सर्जरी का पूरा लाभ मिलेगा या नहीं, इसके बारे में दावे से नहीं कहा जा सकता है लेकिन दूसरी ओर अगर सर्जरी बेहतर स्थिति में समय रहते करवा ली जाए तो मरीज के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर की जा सकती है। उन्होंने कहा कि उनके पास इस बीमारी के ज्यादातर मरीज हिप या घुटने के ज्वाइंट की सर्जरी कराने आते हैं।
उन्होंने कहा कि इनमें से ज्यादातर मरीजों के ज्वाइंट की समस्या बहुत बुरी स्थिति में पहुंच गई होती है। उन्होंने कहा कि अगर ज्यादा नुकसान हो चुका हो तो मरीज का नर्व भी इंन्वाल्व हो जाता है। नर्व की समस्या को एक हदतक ही रिकवर किया जा सकता है। इसमें परमानेंट डैमेज हो जानेक के बाद इसे रिकवर नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि नर्व की समस्या वाले मरीजों की ज्वाइंट रिप्लेस भी कर दी जाए तो भी दर्द कुछ प्रतिशत तक बने रहने की संभावना होती है।
अगर यही सर्जरी नर्व इंवाल्मेंट से पहले करवा ली जाए तो मरीज दर्द रहित जीवन जी सकता है। उन्होंनें कहा कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति में अब इप्लान्ट्स भी इस तरह के उपलब्ध हैं जो 30 साल तक बेहतर प्रदर्शन करते हैं। जिसकी बदौलत लंबे समय तक रीविजन सर्जरी की नौबत नहीं आती है।
एएस मरीजों को अन्य कई बीमारियों का रहता है जोखिम
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लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के पीएमआर विभाग प्रमुख प्रो. ऋतु मजूमदार के मुताबिक, एएस मरीजों में अन्य बीमारियों का जोखिम भी बना रहता है। जोडों में खराबी के साथ ऐसे मरीजों को यूवाइटिस, हृदय रोग, क्राह्ंस, अल्सरेटिव कोलाइटिस जैसी बीमारी होने का भी जोखिम बना रहता है। इस बीमारी को प्रबंधित करने के लिए एक रूमेटोलॉजिस्ट के अलावा कई अन्य विशेषज्ञों की भी जरूरत पड सकती है। इनमें गैस्ट्रो, नेत्ररोग विशेषज्ञ, ऑर्थोपेडिक सर्जन सहित अन्य शामिल हो सकते हैं।